रेत का घरौंदा 
समंदर किनारे रेत पर 
चलते चलते यूं ही 
अचानक मन किया 
चलो बनाए 
सपनों का सुंदर एक घरौंदा 
वहीं रेत पर बैठ 
समेट कर कुछ रेत 
कोमल अहसास के साथ 
बनते बिगड़ते राज के साथ 
बनाया था प्यारा सा
सुंदर  
एक घरौंदा................
वही समीप बैठ कर 
बुने हजारों सपनो के 
ताने बाने जो 
उसी रेत की मानिंद 
भुरभुरे से ,
हवा के झोंके से उड़ने को
बेताब 
प्यारा घरौंदा
.............. 
अचानक उठी लहर 
बहा ले गई वो 
प्यारा सुंदर घरौंदा 
जिसको सींचा था 
सहलाया था ,
प्यार से 
दुलराया था 
बिखरे पड़े उन अवशेषों को 
समेट फिर चल दी 
उन्हे दुबारा सवारने की
खातिर 
प्यारा सा सपनों का
घरौंदा.................. 
जो शायद सपने ही है 
जो कभी सच होते है 
कभी नहीं भी 
मन की संकरी गलियों मे 
यूं ही घुमड़ते हुए बादल से
सपने ............. 
रेत के घरौंदे ही तो है ...................... अन्नपूर्णा बाजपेई 
उत्कृष्ट प्रस्तुति अन्नपूर्णा जी।
ReplyDeleteवाकई ,"सपने .............
रेत के घरौंदे ही तो है… "
आपका हार्दिक आभार अपर्णा जी ।
Deleteबहुत सुन्दर भाव सजोये प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद मधु जी ।
Deleteआपका आभार अंजू जी ,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. सपनों की मानिंद 'रेत के घरोंदे'.
ReplyDeleteसपने तो सपने होते हैं
कब होते हैं अपने
नई पोस्ट : पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (16-11-2013) "जीवन नहीं मरा करता है" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1431” पर होगी.
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
भव सिन्धु के तटपर हम सब अपने अपने सपने के घरोंधे बना रहे हैं ...प्रकृति कब इसको मिटा दें ..कुछ पता नहीं -----अनुपमाँ जी बहुत सुन्दर भाव सजाया है आपने
ReplyDeleteआ0 कालीपद जी आपका हार्दिक आभार ।
Deleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteसुषमा जी आपका आभार ।
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ReplyDelete’मन की सकरी गलियों से
यूं ही घुमडते बादल से
सपने---
रेत के घरोंदे होते है”
खूबसूरत,जीवन के सत्य को दर्शाती पंक्तियां
आपका आभार ।
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अन्नपूर्णा जी ..
ReplyDeleteनीरज जी आपका आभार ।
Deleteआदरणीय बहुत सुन्दर शब्दों से अलंकृत आपकी रचना , धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६
आशीष भाई जी आपका आभार ।
Deleteसपने घरोंदों से और घरौंदे सपनों से। सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteआशा जी आपका हार्दिक आभार ।
Deleteइन्हीं घरोंदों के संवारते जिंदगी गुज़र जाती है...नयापन बना रहता है...
ReplyDeleteवाणभट्ट जी आपका हार्दिक आभार ।
Deleteचाहे इनकी नियति घरोंदे जैसे ही क्यों न हो लेकिन स्वप्न देखना ही होता है. तभी हम आगे पढ़ पाते हैं. अति सुन्दर कृति.
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