Thursday, 14 November 2013

रेत के घरौंदे ............ कविता


रेत का घरौंदा
 
समंदर किनारे रेत पर
चलते चलते यूं ही
अचानक मन किया
चलो बनाए
सपनों का सुंदर एक घरौंदा
वहीं रेत पर बैठ
समेट कर कुछ रेत
कोमल अहसास के साथ
बनते बिगड़ते राज के साथ
बनाया था प्यारा सा सुंदर 
एक घरौंदा................
वही समीप बैठ कर
बुने हजारों सपनो के
ताने बाने जो
उसी रेत की मानिंद
भुरभुरे से ,
हवा के झोंके से उड़ने को बेताब
प्यारा घरौंदा ..............
अचानक उठी लहर
बहा ले गई वो
प्यारा सुंदर घरौंदा
जिसको सींचा था
सहलाया था , प्यार से
दुलराया था
बिखरे पड़े उन अवशेषों को
समेट फिर चल दी
उन्हे दुबारा सवारने की खातिर
प्यारा सा सपनों का घरौंदा..................
जो शायद सपने ही है
जो कभी सच होते है
कभी नहीं भी
मन की संकरी गलियों मे
यूं ही घुमड़ते हुए बादल से
सपने .............
रेत के घरौंदे ही तो है ...................... अन्नपूर्णा बाजपेई 









22 comments:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति अन्नपूर्णा जी।
    वाकई ,"सपने .............
    रेत के घरौंदे ही तो है… "

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    1. आपका हार्दिक आभार अपर्णा जी ।

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  2. बहुत सुन्दर भाव सजोये प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद मधु जी ।

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  3. आपका आभार अंजू जी ,

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  4. बहुत सुन्दर. सपनों की मानिंद 'रेत के घरोंदे'.
    सपने तो सपने होते हैं
    कब होते हैं अपने

    नई पोस्ट : पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (16-11-2013) "जीवन नहीं मरा करता है" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1431” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  6. भव सिन्धु के तटपर हम सब अपने अपने सपने के घरोंधे बना रहे हैं ...प्रकृति कब इसको मिटा दें ..कुछ पता नहीं -----अनुपमाँ जी बहुत सुन्दर भाव सजाया है आपने

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    1. आ0 कालीपद जी आपका हार्दिक आभार ।

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  7. भावो का सुन्दर समायोजन......

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    1. सुषमा जी आपका आभार ।

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  8. ’मन की सकरी गलियों से
    यूं ही घुमडते बादल से
    सपने---
    रेत के घरोंदे होते है”
    खूबसूरत,जीवन के सत्य को दर्शाती पंक्तियां

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  9. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अन्नपूर्णा जी ..

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    1. नीरज जी आपका आभार ।

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  10. आदरणीय बहुत सुन्दर शब्दों से अलंकृत आपकी रचना , धन्यवाद
    नया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६

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    1. आशीष भाई जी आपका आभार ।

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  11. सपने घरोंदों से और घरौंदे सपनों से। सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।

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    1. आशा जी आपका हार्दिक आभार ।

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  12. इन्हीं घरोंदों के संवारते जिंदगी गुज़र जाती है...नयापन बना रहता है...

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    1. वाणभट्ट जी आपका हार्दिक आभार ।

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  13. चाहे इनकी नियति घरोंदे जैसे ही क्यों न हो लेकिन स्वप्न देखना ही होता है. तभी हम आगे पढ़ पाते हैं. अति सुन्दर कृति.

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