Friday 3 May 2013

"प्रिय भारत "

आज फिर आँख भर आई,
हुई फिर से रुसवाई , 
लेकिन शायद कोई है,
जिसकी आँख मे एक बूंद न आई,
आज फिर ..............

भारत माँ  का एक और सपूत,
शिकार नृशंश्ता का गवाह बन गया ,
बचपन की यादें छोड़ गया,
जीवन का राग  है छोड़ गया,
बिलखती थी तरुणाई  अरु ममताई,
आज फिर ......... 

पड़ोसी दुश्मनों से हम,
 बचेंगे भला  कब तलक,
एक ने सिर है काटा,
दूजे ने छुरी घुसाई,
आज फिर .................

अरे! नादानों !उठो !
अब तो जागो !
कब तक देखते रहोगे !
यूं ही बंद आँखों से,
मूक लबों से,
चंहु ओर  फैली ये,
अजब गज़ब करुणाइ,
 आज फिर .........................

शायद समझ न आयेगा,
जीवन  यूं ही बीता जाएगा,
निशब्द तुम रहोगे ,
शब्दातुर वो रहेंगे ,
जीवन "आम"का यूं ही,
 तमाम होता जाएगा,
नूतन देख  दशा प्रिय भारत!
कब टूटेगी  तंद्राई,
आज फिर आँख ...................



  







5 comments:

  1. sach likha apne apni rachna mey.....pata nahi kab tak ye silsila chalega....

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  2. बहुत दुखद है, कुछ कहते नहीं बनता
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

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  3. सार्थक और सटीक लिखा आपने
    बधाई


    आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करें
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  4. बेहद सुन्दर रचना | सादर

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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