Thursday 29 August 2013

लघु कथा - बहू बनाम बेटी

बहू बनाम बेटी

राधा जी घर मे अकेली थी , बेटा बहू के साथ उसकी बीमार माँ को देखने चला गया था । उसने कुछ पूछा भी नहीं बस आकार बोला – माँ हम लोग जरा कृतिका की माँ को देखने जा रहे है शाम तक आ जाएँगे । आपका खाना कृतिका ने टेबल पर लगा दिया है टाइम पर खा लेना , तुम्हारी दवाएं भी वही रखी है खा लेना भूलना मत ,और दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना ।” कहता हुआ वो कृतिका के साथ बाहर निकल गया । पर बहू ने एक शब्द भी न कहा । “क्या वो कहती तो क्या मै मना कर देती । बहुयेँ कभी बेटी नहीं बन सकती आखिर बेटी तो बेटी ही होती है । “ वे सोचती हुई गेट तक आई और अच्छी तरह गेट बंद कर दिया । बाहरी कमरे मे टी वी ऑन कर बैठ गई। कुछ ही देर बाद डोर बेल घनघना उठी । उठ कर दरवाजा खोला देखा उनकी अपनी बेटी दामाद के साथ खड़ी है । खुशी से उनका चेहरा खिल उठा । बेटी को गले लगाते हुए पूछा- “तेरी सास ने मना नहीं किया ”, “वह बोली उनकी सुनता कौन है उनके लिए तो उनका बेटा ही काफी है । वही उनको संभाल लेते है मै तो बोलती भी नहीं । और आज भी ये ही उन्हे बोल कर आए हैं मैंने न उनसे कुछ पूछा न कहा । बस ड्यूटी पूरी कर देती हूँ ताकि बेटे से शिकायत का मौका न मिले ।” मुसकुराते हुए उन्होने बेटी की इस करतूत को आसानी से भुला दिया।  

22 comments:

  1. very fine content ... reality of life..! beti ka moh per asaliyat samne aati hai tab pata chalta hai sansar mai sab kuchh apni dharna ke hisab se nahi tota..

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    1. आपका कथन सत्य है ।

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  2. यथार्थ का सुंदर चित्रण . धन्यवाद बेबाक अभिव्यक्ति के लिए

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    1. आपका हार्दिक आभार ।

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. विचारणीय.

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    1. आपका आभार सौमित्र जी ।

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  4. यही दोहरी मानसिकता है ।

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    1. आपकी टिप्पणी से मेरा उत्साह वर्धन होता है संगीता दी , आपका आभार ।

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  5. बिल्कुल सही और सटीक लघु कथा

    ''बहु बेटी तभी बन सकती है, जब वो ये पुर्णतः समझ जाएगी
    कि वो भी एक दिन सास बनेगी ।''

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    1. सही कहा आपने अभि ।

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  6. Truth depicted.
    Please visit my blog Unwarat.com I have written a new article--BhaktiVedenta Manor Watford London U.k. Janmashtami.Please read it & give your comments.
    Vinnie

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    1. विनी दी आपके ब्लॉग पर आपके लेखन को पढना मेरे लिए सौभाग्य की बात है ।

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  7. हमारा समाज आज भी इन दोहरे मानदंडों को जी रहा है ! बेटी के लिये अलग मानसिकता है और बहुओं से अलग तरह की अपेक्षाएं हैं ! इसीलिये समन्वय व सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता ! प्रेरक एवँ सारगर्भित लघु कथा !

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  8. बहुत बढ़िया !

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  9. kitni ajeeb baat hai na...par hota hamesha aisa hi hai...yehi sach hai.....sundar....

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  10. बहुत बढ़िया कथा है ! जब तक हम बेटी और बहू के कर्तव्य और अधिकारों में असमानता बनाए रखेंगे ना कभी बहू बेटी सी लग पायेगी ना ही बेटी कभी अच्छी बहू बन पायेगी ! मैंने कल भी कमेन्ट किया था लेकिन कहीं दिखाई नहीं दे रहा !

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    1. साधना दी अपना बहुमूल्य समय हमारे ब्लॉग पर देने और पढ़ने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।

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  11. यह फर्क शायद कभी मिट भी नहीं सकता कहने को अब बहुत से परिवार हैं जहां यह फर्क नहीं दिखता मगर मन में तो रहता ही है।

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    1. मै सहमत हूँ इस बात से पल्लवी कि अभी भी मनो का फर्क बाकी है ।

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