मेहा बार बार नीर बहाये
प्रियतम क्यों पीर बढ़ाए
सावन की अगन जिया जलाए
घेर घेर कर गरजे तड़पे भरमाए
मेहा बार ...............
पेड़ों पर छाई तरुणाई
हरियाली चंहु ओर छाई
प्रेम वृक्ष क्यों सूखा जाए
मेहा बार …………………………
कोयल कूके अंबवा डरियन
पीहू पीहू की गुहार लगाए
सुन सुन जिया जलता जाए
मेहा बार ……………………….
अन्नपुर्णा वाजपेयी जी,
ReplyDeleteबहुत ही खुबसुरत रचना है.
बहुत सुन्दर कविता है जी , आपका धन्यवाद जी !!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव !
ReplyDeletelatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
सावन में विरहाग्नि में जलती नायिका के भावों का बहुत सुंदर चित्रण किया है ! बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteआपका शुक्रिया ।
DeleteDhanyabad ji
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteआप सबका हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteलाजवाब रचना
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteमालिक मोहम्मद जायसी का जायसी के पद्मावत की याद ताजा करती आपकी कविता
ReplyDeleteकाबिलेतारीफ है ,,,,,
आपका हार्दिक आभार , राजकिशोर जी ।
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