Wednesday, 31 July 2013

शब्दों के पंछी

शब्दों के घेरे
 घेर लेते है मुझे
किसी चिड़िया की
मानिंद आ बैठते हैं
हृदय रूपी वृक्ष द्वार पर  
कल्पनाओं की टहनी पर
फुदक फुदक कर
बनाते है नई रचनाये
गीत कवित्त कवियाएं
कल्पनाओं की उड़ान
को देते हैं हर बार
नए पंख लगा बैठते  
हर बार टहनी टहनी
मेरे नए जीवन की
हर सुबह को देते
एक सूरज नया ।  

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