Friday 2 August 2013

सावन अगन लगाये

मेहा बार बार नीर बहाये
प्रियतम क्यों पीर बढ़ाए
सावन की अगन जिया जलाए
घेर घेर कर गरजे तड़पे भरमाए
मेहा बार ...............
पेड़ों पर छाई तरुणाई
हरियाली चंहु ओर छाई
प्रेम वृक्ष क्यों सूखा जाए
मेहा बार …………………………
कोयल कूके अंबवा डरियन
पीहू पीहू की गुहार लगाए
सुन सुन जिया जलता जाए
मेहा बार ……………………….

13 comments:

  1. अन्नपुर्णा वाजपेयी जी,
    बहुत ही खुबसुरत रचना है.

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  2. बहुत सुन्दर कविता है जी , आपका धन्यवाद जी !!

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  3. सावन में विरहाग्नि में जलती नायिका के भावों का बहुत सुंदर चित्रण किया है ! बहुत सुंदर रचना !

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    1. आपका शुक्रिया ।

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  4. आप सबका हार्दिक आभार ।

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  5. मालिक मोहम्मद जायसी का जायसी के पद्मावत की याद ताजा करती आपकी कविता
    काबिलेतारीफ है ,,,,,

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    1. आपका हार्दिक आभार , राजकिशोर जी ।

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