Monday, 22 September 2014

मित्रों बहुत दिनों के पश्चात आपसे भेंट हो सकी है एक सत्य घटना आपकी सेवा मे

दया के सिक्के - ये सत्य घटना  है
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बात मैं अपने बचपन से आरंभ करती हूँ - एक समय था जब मैं गरीबों पर बहुत करुणा करती थी मुझे लगता था कि ये बेचारे गरीब हैं और इन्हे हमारी जरूरत है । इनकी हर संभव मदद करनी चाहिए । सो मैं किसी भी गरीब को खाली हाथ नहीं जाने देती थी यहाँ तक कि मुझे अपनी माँ से कई बार डांट भी खानी पड़ती । एक बार तो सच मे मुझे लगा कि ये गरीब हमे धोखा देते है , लेकिन फिर दूसरे मन ने मुझे मना किया नहीं ये बेचारे खुद ही सताये हुये है ये क्या किसी को धोखा देंगे । बात आई गई हो गई और मैं अपने ढर्रे पर कायम रही । माँ जब पैसे न देती तो मैं अपने पैसे बचा लेती कि किसी मांगने वाले को दे दूँगी । कभी माँ की नजर बचा कर आटा , दाल , चावल इत्यादि दे आती । एक बार कड़ाके की ठंड थी , रक्त धमनियों मे जमता सा प्रतीत हो रहा था बादल भी घिरे हुये थे और हल्की फुहारें पद रही थी । मैं अपने विद्यालय जाने को तैयार हो रही थी । जाने मे कुछ समय शेष था इसलिए छज्जे पर खड़े हो  पानी के रुकने का इंतजार करने लगी । अचानक एक अंधे युगल एक नन्हें दुधमुंहे बच्चे को सीने  से चिपकाए अर्धनग्न अवस्था मे पूरा परिवार भीख मांगता हुआ दरवाजे आ खड़ा हुआ । मैंने माँ से कहा - ' माँ कोई फटी हुई शाल दे दो ये लोग ठंड से काँप रहे हैं । माँ ने डपट दिया बोली ये सब इनकी चालाकी है , ये जितनी गठरियाँ तुम इसके कंधे पर देख रही हो ये सब कपड़े ही हैं साड़ियाँ और चादरें । मैंने नहीं माना और जिद करके एक कंबल उनको दिया जो की थोड़ा सा फटा था लेकिन उस पूरे परिवार का तन आराम से ढक  सकता था । मुझे तसल्ली थी कि मैंने उनकी मदद की है उन्हे ठंड से बचाया है । तब तक विद्यालय जाने का समय हो गया था और बारिश भी थम गई थी । मैं विद्यालय चल दी, थोड़ी दूर पर जो देखा उसने मेरी अंखे हमेशा के लिए खोल दीं , माँ एक दम सच्ची थीं । वो हम सबको बेवकूफ बना कर ही भीख मांगते थे । जो कंबल मैंने उन्हे दिया था वो उस महिला भिखारिन ये ये कहते हुये कचड़े मे फेंका कि - ससुरे ये कोठी वाले हमसे भी बड़े भिखारी हैं एक सही सलामत कंबल भी न दिया । अब ये कैसे बिकेगा ।'  मेरे पाँवों के नीचे से जमीन निकाल गई , ' हे भगवान !!'
उस दिन मैंने कसम खाई कि अब किसी भी गरीब की कोई मदद नहीं करूंगी । उसके बाद सच मे मैंने कोई मदद नहीं की । ये घटना जो आपको सुनाउंगी ये हाल की ही घटना है  -
मैं अपनी मित्र के साथ दिल्ली से वापस आने के स्टेशन पर बैठी थी  कई भीख मांगने वाले आए उसने तो सबको कुछ न कुछ दिया पर मैंने नहीं । एक वृद्ध युगल अचानक पास आया और हमारे पास ही बैठ गया । वृद्ध स्त्री ने सकुचाते हुये हमारी तरफ आकर धीरे से कहा - ' बिटिया हमारी तनिक मदद करि देओ । हम दोनों सबेरे आए रहे हमारे लरिका ने हमे बोलाओ हतो , उसने हमे लेने आए को कहो थो । पर सबेरे ते सांझ होई गयी वो हमे लेन नाई आओ । और हमाओ मोबाइल पैसा सब चोरी होई गओ , हम लरिका का घर नई जनती हैं । वापस जाए का टिकट देवाई देव तो हम अपने घरई चले जाएँ । " चूंकि इतने सारे भिखारियों को पैसा देते देते मेरी मित्र भी थक चुकी थी सो उसने भी छिड़क दिया , और मैं तो कोई मदद करना ही नहीं चाहती थी क्योंकि मैं ऐसे लोगों को खूब समझ चुकी थी । लेकिन मुझे लगा कि शायद वह सच कह रही है । फिर भी देने के लिए  हाथ नहीं उठा । उसने आसपास बैठे  कुछ यात्रियों से भी कहा मुझे उसका मांगना अखर रहा था । तब  तक एक काल आ गई मैं बात करने कगी और वे दोनों बुजुर्ग  दंपत्ति वहाँ से चले गए । पाँच मिनट बाद स्टेशन के दूसरे प्लेटफार्म पर कोहराम मच गया एक बूढ़े बुढ़िया ट्रेन से कट गए । हम पलटे तो - ओह !!! ये तो वही हैं । सभी यात्री दया से देखते हुये कुछ सिक्के उनकी तरफ उछाल देते कि इनकी मिट्टी उठाने के काम आएंगे । 

2 comments:

  1. इंसा के चहरे पर ,इतने है नकाब के, कैसे पहचाने पीछे , सादगी है या फरेब....

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  2. ओह्ह .........कुछ छल जाते हैं और कुछ छले जाते हैं अपनों से ही | क्या कहूँ उस बेटे के लिए जो माता-पिता को बुला कर भी लेने नही आया ................

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