Monday, 21 July 2014

साहित्यकारों को सम्यक सम्मान एवं आर्थिक मान मिले इस दिशा मे पहल होनी चाहिए





आलेख 
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साहित्य के स्वरूप को लेकर चलने वाली बहस कोई नयी चीज़ नहीं है। किसी पुराने ज़माने की कालातीत कहानी जैसे ही पुरातन साहित्य शास्त्रियों की पुस्तकों के सिद्धान्तहमारी आधुनिक साहित्यिक चिंतन में प्रतिष्ठित हैं। यूँ साहित्य के स्वरूप पर हमारे विद्वान साहित्यकार आज भी पुस्तकें लिख रहे हैंपुराने ढरों से दूरउदित होती नई विधाओंनए लेखन को साहित्य में समाने या साहित्य से हटाने के लिए नए प्रतिमान गढ़ रहे हैं और गढ़े हुई इन प्रतिमानों की प्रामाणिकता पर बहस कर रहे हैं - यह सब एक बात तो स्पष्ट करता ही है कि साहित्य जीवन सा गहराजीवन से जुड़ाजीवन की ही तरह हर समय नया रंगरूप दिखाने वाला होता है। कितने ही रूप पकड़ेकितने ही समझे पर फिर भी कुछ कहना-सुनना-समझना शेष रह गया।
ऐसे में बरबस ही घनानंद के पद की एक पंक्ति याद आती है-
"रावरे रूप की रीति अनूप नयौ नयौ लागत ज्यौं-ज्यौं निहारियै"
साहित्यकारोंरंगकर्मियों और हस्तशिल्पियों के लिए एक योजना चलायी जा रही हैजिन्होंने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा की हो और वर्तमान में अभावग्रस्त हों. इस योजना का लाभ ऐसे लोगों के अलावा उनके आश्रितों को भी दिया जाता है. इसके तहत सीधी वित्तीय सहायता दी जाती है. यह योजना साहित्यकला और जीवन के ऐसे ही क्षेत्रों में अभावग्रस्त परिस्थितियों में रह रहे उत्कृष्ट व्यक्तियों और उनके आश्रितों को वित्तीय सहायता के लिए है. इसमें वैसे साहित्यकार या लेखक भी लाभ पा सकते हैंजिनका योगदान तो उत्कृष्ट हो हीलेकिन उसकी कृति प्रकाशित नहीं हुई हो.
योजना का लाभ पाने के लिए ऐसे साहित्यकारों और कलाकारों की आर्थिक हालत को भी आधार बनाया गया है. आवेदक की अपनी और पति या पत्नी की कुल आय चार हजार रुपया प्रतिमाह से अधिक नहीं होना चाहिए. साथ ही उसकी उम्र कम-से-कम 58 वर्ष होलेकिन यह उन आवेदकों के मामले में हैजो खुद कलाकार या साहित्यकार है. अगर उसका आश्रित आर्थिक सहायता के लिए आवेदन करता हैतो उसके लिए आयु सीमा तय नहीं है ।
इस योजना के तहत आर्थिक सहायता की सीमा चार हजार रुपया मासिक तय है. यह राशि दो प्रकार से मिलती है. अगर आपका आवेदन केंद्रीय कोटे के तहत स्वीकृत हैतो केंद्रीय संस्कृति मंत्रलय पूरी राशि आपको देगी और अगर आवेदन राज्य कोटे के तहत स्वीकृत हैतो आपको राज्य सरकार से पांच सौ और केंद्र से 35 सौ रुपये हर माह मिलेंगे.
ऐसी ही कलाकारों और साहित्यकारों को इस योजना के तहत चुना जाता हैतो अपने क्षेत्र में ख्याति प्राप्त हों और जिन्हें केंद्र या राज्य सरकार ने पुरस्कृत किया हो. सहायता इसकी प्रसिद्धि पर निर्भर करती है. इसके लिए चयन समिति बनती है. अगर राज्य सरकार से किसी कलाकार या साहित्यकार का आवेदन अनुशंसित होकर केंद्र के पास पहुंचातो उस पर समिति सीधा विचार करती है और अगर आवेदन सीधा केंद्र को मिला होतो आवेदक की आर्थिक स्थिति का पहले पता लगाया जाता है. यह केंद्रीय संस्कृति मंत्रलय के विवेक पर निर्भर करता है कि वह किस कलाकार को कितने समय के लिए आर्थिक सहायता मिलेगी. समय सीमा खत्म होने पर उसका सहायता का नवीकरण भी होता है.
इस योजना के तहत सहायता प्राप्त करने वाले की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी या पति को जीवन भर इसका लाभ मिलता रहेगा. आश्रितों के मामले में यह सहायता उसे तक तब तक मिलती रहेगीजब तक कि वह इसे लेने से इनकार नहीं करता या उसे रोजगार नहीं मिलता हैलेकिन उसके 21साल का होने और अगर बेटी हैतो उसकी शादी होने के बाद यह लाभ बंद कर दिया जाता है.
इस योजना के तहत मंत्रलय अभावग्रस्त प्रसिद्ध कलाकारों को चिकित्सा के लिए भी आर्थिक मदद देती है.। यह योजना विशिष्ट मंचीय कला परियोजनाओं के लिए है. यह अनुदान सक्रिय कलाकारों और उसके व्यावसायिक समूहों को मिलता है. इस स्कीम के तहत नाट्य समूहोंरंगमंच समूहों,संगीत मंडलियोंबाल थियेटरएकल कलाकारों तथा मंचीय कला के सदस्यों को लाभ मिले ।
किन्तु लाभ सच मे उन सभी को मिल रहा है या नहीं यह किसी ने देखने कोशिश नहीं की । यथार्थ तो यह है कि ये सभी वादे और और योजनाएँ सिर्फ कोरे वादे और कोरी योजनाएँ है । आज हम देखते है कि कई अच्छे साहित्यकार धन के अभाव मे ही मर जाते है जबकि उनके पीछे उनकी अथाह लेखन राशि होती है । जिससे प्रकाशक और वितरक कमाते है । पहले के सहितयकारों का जीवन भी देखिये तो कई ऐसे साहित्यकार मिल जाएंगे जिनहोने अभावों मे जी कर जीवन गुजार दिया ।
इसके अवशयक है कि सरकार की ओर से ठोस कदम उठाए जाएँ और साहित्यकारों को सम्मान और अर्थ्क सहयोग मिले ।


अन्नपूर्णा बाजपेई 'अंजु'





3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-07-2014) को "सहने लायक ही दूरी दे" {चर्चामंच - 1683} पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सिध्यांत के रूप में यह सही है कि जरूरतमंद साहित्यकारों को मदत मिले परन्तु भ्रष्टाचार से ग्रसित देश में मिलता है चापलुशों को और गैर जरुरतमंदों को |
    कर्मफल |
    अनुभूति : वाह !क्या विचार है !

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