Saturday, 23 November 2013

सुनो आखेटक !!! ........................ ( कविता )

आखेटक !!
क्या तुम्हें आभास है ?
कि तुम! मृगमरीचिका की   
जिजीविषा मे
किसी का आखेट कर
जीवन यापन की मृगया मे
भटकते हुये मदहोश हो !
आखेटक !
क्या तुम्हें आभास है ?
आखेटक को संजीवनी नहीं मिलती
मन की तृष्णा की खातिर
अनन्य मार्गदर्शी का भी
विसस्मरण कर दिया है
सृजनमाला को विस्फारित नेत्रों से
देखते हुए मदमस्त हो !
आखेटक !!
क्या भूल गए हो ?
आखेट करने को आया तीर
एक दिन तुम्हें भी बेध जाएगा
तब !!...... समक्ष राम न होंगे
सागर से उबरने को कर्म न होंगे
सुनो आखेटक !!!.............. 

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर !
    मित्रों ! 18 नवम्बर से २३ नवम्बर तक नागपुर प्रवास में था ! इसीलिए ब्लॉग पर उपस्थित नहीं हो पाया !अब कोशिश करूँगा कि अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहचुं!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार को (24-11-2013) बुझ ना जाए आशाओं की डिभरी ........चर्चामंच के 1440 अंक में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपका हार्दिक आभार आ0 कालीपद जी ।

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