दीपोत्सव या दीपावली ,
भारतीय परंपरा के अनुसार व्रत , पर्व एवं उत्सवों को शुभ तिथि शुभ वार और शुभ
नक्षत्र मे मनाने का विधान है । इनकी प्रमुखता को मान्यता देते हुए इनको प्रस्तुत
किया गया जो आज भी जन मानस मे प्रचिलित है । भारत मे मनाए जाने वाले व्रत पर्व एवं
त्योहार दो तरह के होते है । कुछ समग्र देशीय और कुछ क्षेत्रीय ।
होली ,
दिवाली , दशहरा , रक्षाबंधन , राम नवमी , जन्माष्टमी और शिवरात्रि समग्र देशीय है । जबकि
गणेश चतुर्थी (महाराष्ट्र ), नागपंचमी (बंगाल), हरियाली तीज (राजस्थान ),
बैशाखी ( पंजाबी ), ओणम ( केरल), पोंगल ( तमिल नाडु ), बिहू ( असम ),
जगन्नाथ पुजा (उड़ीसा), आदि ऐसे त्योहार है जो कि क्षेत्रीय त्योहार है
परंतु अब ये व्यापक होते जा रहे है । मार्कन्डेय पुराण मे श्री दुर्गा सप्तशती के
अंतर्गत तीन रात्रियों का उल्लेख मिलता है । कालरात्रि ,
महारात्रि , मोह रात्रि । कालरात्रि से हुताशनी ,
महारात्रि - शिवरात्रि , मोहरात्रि – शरत पुर्णिमा और दीपावली । कुछ
विद्वान दीपावली को कालरात्रि मानते है । लेकिन इसे मोह रात्रि मानना ज्यादा उचित
होगा । दूसरे जितने भी पर्व, उत्सव अथवा त्योहार वे सभी दिन के धवल प्रकाश मे
ही समारोह पूर्वक मनाए जाते है ।
सभी त्योहारों मे सबसे
श्रेष्ठ त्योहार है दीपावली । जहां सभी त्योहार एक एक ही दिन मनाए जाते है वहाँ दीपावली पाँच
दिनों तक सतत मनाया जाता है । कार्तिक कृष्ण त्रियोदशी से कार्तिक शुक्ल
द्वितीया तक मनाया जाने वाला यह पर्व
निःसंकोच धर्माश्रित राष्ट्रीय पर्व कहा जा सकता है ।
दीपोत्सव का प्रारम्भ
त्रियोदशी से होता है इसे धनतेरस के नाम से जाना जाता है । यह नाम आयुर्वेद
प्रवर्तक धन्वंतरि के जयंती दिवस के आधार पर ही प्रचिलित हुआ है । ऐसा अनुमान है ।
इस दिन नए बर्तन भी खरीद कर लाये जाते है इससे घर मे सदैव लक्ष्मी का निवास रहता
है । घर के द्वार पर चावल की ढेरी बना कर उत्तर की ओर की मुख कर दीपक जलाया जाता
है इससे लक्ष्मी कभी घर छोड़ कर नहीं जाती ऐसा माना जाता है ।
पुरानों के अनुसार कार्तिक
मास मे यमुना स्नान और दीपदान विशेष फल दायी माने जाते है । धनतेरस के दिन यमुना
स्नान कर , धन्वंतरि और यमराज का पूजन दर्शन ,
यमराज के निमित्त दीपक दान करना चाहिए । धनतेरस के संबंध मे एक कथा है :- एक बार
यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि तुम लोग अन्नत काल से जीवों के प्राण हरण का दुःखद कार्य करते हो ,
क्या कभी यह कार्य करते समय तुम्हारे मन मे दया आई या तुमने सोचा कि अमुक के प्राण
न लिए जाएँ ? यदि ऐसी स्थिति कभी आई हो तो बताओ ।
यह सुनकर एक दूत ने बताया –
“ प्रभों ! हंस नामक एक प्रतापी राजा था । एक बार वह आखेट करने के लिए वन मे गया और
मार्ग भटक कर दूसरे राजी हेमराज के राज्य मे जा निकला । भूख प्यास से व्याकुल राजा
हंस का हेमराज ने बहुत स्वागत किया । उसी दिन राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई थी
इसलिए राजा हेमराज ने राजा हंस को पुत्र प्राप्ति का निमित्त मान कर उनको आग्रह
पूर्वक कुछ दिनों के लिए अपने यहाँ पर ही रोक लिया । छठी के दिन जब समारोह पूर्वक
उत्सव मनाया जा रहा था किसी भविष्य वेत्ता ने बताया कि विवाह के चार डीनो के
पश्चात ही बालक की मृत्यु हो जाएगी जिसे सुनकर सारा नगर शोक मे डूब गया था । राजा
हंस को जब यह पता चला तो उन्होने राजा को आश्वस्त करते हुए कहा कि – आप निश्चिंत
रहें आपके पुत्र की प्राण रक्षा मै स्वयम करूंगा । अपने वचन की रक्षा के लिए यमुना
तट पर एक गिरि गह्वर मे दुर्ग का निर्माण करा दिया और राजकुमार के गूढ रूप से रहने
के व्यवस्था करा दी । वहाँ ही रहते हुए राजकुमार तरुण हुआ और फिर राजा हेमराज ने
अपने मित्र की सलाह मान कर उसका विवाह एक सुंदर राजकुमारी से कर दिया । राजा हंस
अपने मित्र पुत्र की प्राण रक्षा के लिए विविध उपाय कर रहे थे ,
किन्तु आपके विधान को अन्यथा करने की हिम्मत किसमे है । विवाह के चौथे दिन ही हमे
उसके प्राण हरण का अप्रिय कार्य करना पड़ा । जब हम उसके प्राण लेकर चले तो उस समय
का दृश्य बड़ा ही दुःखद था । उस समय तो हम स्वयं भी रो पड़े थे ,
परंतु करते क्या परवश थे उस कार्य से विरत हो नहीं सकते थे । इस घटना को सुन कर
यमराज कुछ देर मौन रहे फिर बोले – तुम्हारी करूण कथा सुनकर मै भी विचलित हो गया
हूँ पर क्या करूँ कुछ कर नहीं सकता । जैसा कि पहले बता चुका हूँ कि त्रियोदशी को
यमुना मे स्नान कर दीपदान करने से और व्रत आदि अनुष्ठान करने से अकाल मृत्यु का
क्लेश दूर किया जा सकता है । तभी से धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान करने
की प्रथा चली आ रही है ।
दूसरा दिन नरक चतुर्दशी या
रूपचतुर्दशी के रूप मे मनाया जाता है । इसे छोटी दिवाली दिवाली भी कहते है । नरक न
प्राप्त हो तथा पापों से मुक्ति मिल जाए इस लिए के समय चार बत्तियों वाला दीपक
जलाना चाहिए । पुरानों के अनुसार आज ही के दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध कर
संसार को भय मुक्त किया था । इसी विजय के उपलक्ष्य मे यह त्योहार मनाया जाता है ।
दीपोत्सव पर्व का तीसरा
दिन दीपावली के नाम से जाना जाता है , इस पर्व का सभी को बड़ी बेसबरी से इंतजार रहता है ।
भारत मे मनाए जाने वाले त्योहारो मे इसका विशेष स्थान है । इस पर्व के साथ हमारा
युग युग का इतिहास जुड़ा हुआ है । कहीं महराज पृथु द्वारा पृथ्वी को दोहन कर देश को
धन संपत्ति से समृद्ध बना देने के उपलक्ष्य मे दीपावली मनाए जाने का उल्लेख मिलता
है । कहीं समुद्र मंथन से भगवती लक्ष्मी जी के प्राकट्य की प्रसन्नता मे दीपावली
मनाने का वर्णन आता है । कहीं श्री राम द्वारा रावण का वाढ कर अयोध्या वापस लौटने
पर प्रजा जनों के द्वारा दीपमाला की पंक्तियाँ सजा कर उनका स्वागत कर दीपावली
मनाने का उल्लेख है , कहीं नरकासुर का वध कर श्री कृष्ण द्वारा बंदी गृह मे
बंद सोलह हजार राजकन्याओ को मुक्त करा उनका उद्धार करने पर उनके अभिनंदन के लिए
सज्जित दीपमाला के रूप मे । कहीं महाभारत मे पांडवों के सकुशल वनवास से लौटने पर और
कहीं सम्राट विक्रमादित्य के विजयोपलक्ष्य मे दीप प्रज्ज्वलित कर उनका अभिनंदन
करने का उल्लेख है ।
आर्ष वाङ्ग्मय के अनुसार
जो व्यक्ति रात्री जागरण कर भगवती लक्ष्मी का शास्त्रीय विधि से पूजन करता है उसके
घर मे लक्ष्मी का निवास होता है , जो आलस्य और निद्रा के वशीभूत हो भगवती धनदा की
पूजा से विमुख रहता है उसके घर से लक्ष्मी विमुख हो कर चली जाती है । पुरुषार्थी
को लक्ष्मी प्राप्त होना अनिवार्य है इसलिए कहा भी गया है :- उद्योगिनं पुरुषसिंघमुपैति
लक्ष्मीः ।
इस पर्व का चौथा दिन कार्तिक
शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाने वाला गोवर्धन नामक पर्व है जिसे अन्नकूट भी कहते है
। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने बृज के लोगो को गोवर्धन की पूजा कर अपने नवान्न को
उन्हे समर्पित करने की आज्ञा दी थी । सभी लोग छप्पन प्रकार के भोग बना कर गोवर्धन
की पूजा करते है ।
दीपोत्सव पर्व का समापन
दिवस है कार्तिक शुक्ल द्वितीया जिसे भैया दूज या यम द्वितीया भी कहते है ।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन बहने भाइयों को आमंत्रित कर उनका तिलक करती है और भोजन
कराती हैं । इस दिन यमुना के घर अचनक ही पहुंचे उनके भाई यम का यमुना द्वारा
सत्कार उनके भाल पर तिलक लगा कर किया गया तथा अनेकों भांति उनका सत्कार किया जिससे
प्रसन्न हो कर यम ने यमुना से कहा कोई वर मांग लो । तब यमुना ने उनसे कहा – भैया
आप इसी प्रकार हर वर्ष हमारे यहाँ आया करें और इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर
उनसे तिलक करवाए और आतिथ्य स्वीकारे उसकी सब मणिरथ आप पूर्ण किया करें औए उन्हे
आपका भय न सताये । यमुना की प्रार्थना को यम ने स्वीकार कर लिया तभी से यह भाई बहन
का त्योहार मनाया जाने लगा ।
समिष्ट रूप मे आनन्द और
उल्लास को बढ़ाने वाले इस दीपावली पर्व का धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय
महत्त्व अनुपम है और वही इसे पर्वराज बना देता है ।
...............अन्नपूर्णा बाजपेई
दीपावली का पौराणिक आधारों का समावेश आलेख को बहुत रोचक बनाया है -बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteनई पोस्ट हम-तुम अकेले
Aaj ke mahol me jaruri janakari jise nai pidhi bhulati ja rahi hai.dhanyabad.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (03-11-2013) "बरस रहा है नूर" : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1418 पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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प्रकाशोत्सव दीपावली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आप सभी का हार्दिक आभार ।
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