Wednesday, 3 July 2013

"अंधेरा छंट ही जाएगा"

             
कुछ परछाइयाँ आडी तिरछी सी ,
कुछ लम्बी और पतली सी ।
अतीत के झरोखे से ,
दिखती है और यादों के ।
नश्तर बार बार कई बार ,
चुभते से लगते है ।
उम्र ढल जाती है ,
उनकी धुंध छँटने मे ।
अचानक कहीं से कोई,
तीर चला जाता है ,
बेंधता हुआ दिल को ,
आँसू फिर न थमते है ,
इन बहते सूखते आंसुओ से ,
करती हूँ हर बार एक वादा ,
कि अंधेरा छंट ही जाएगा ।
 नूतन रौशनी फिर होगी ,
नई सुबह जरूर होगी ।






14 comments:

  1. sundar abhivykti .....rachana ke liye badhai.....blog pr aamantran sweekaren
    .

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  2. आत्मविश्वास जगाती प्रेरक रचना!! आभार!!

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  3. positive one...bilkul nayi subah ayegi.....sundar rachna

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  4. आपकी यह रचना कल गुरुवार (04-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  5. मार्मिक अभिव्यक्ति बधाई आपको

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04/07/2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

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  7. very nice, please see this link
    http://ajmernama.com/guest-writer/86921/

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  8. मानव स्वभाव की सोच का अच्छा चित्रण किया है आपने,
    प्रत्येक निराशा के कार्यो में एक आशा की किरण होती है
    बस जरूरत है हम निराश होने की बजाय उसी को देखें !

    ReplyDelete
  9. मानव स्वभाव की सोच का अच्छा चित्रण किया है आपने,
    प्रत्येक निराशा के कार्यो में एक आशा की किरण होती है
    बस जरूरत है हम निराश होने की बजाय उसी को देखें !

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