Monday, 1 July 2013

चार दिन की चाँदनी

मान मन मूरख कहना मेरा
विषयों की यारी छोड़ दे ।
चार  दिन की चाँदनी है ,
आखिर  अंधेरा आयेगा ।
इसलिए अब हट विषयों से ,
निष्काम प्रभु से नाता जोड़ ले ।
संसार है स्वार्थ भरा ,
मूरख नहीं जनता क्या ।
बालपन गया जवानी भी गई ,
अरे! अब वृद्धता है आ गई ।
अब तो इच्छा तृष्णा मार कर ,
विषय आसक्ति  से नाता तोड़ दे।
नूतन यह मानुष का तन ,
विरथा ही, हा ! खो रहा ।
चार दिन की चाँदनी है .....................  

7 comments:

  1. aap bilkula sacha kahtI hai.
    vinnie

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  2. जीवन के लिए अहम सीख इस काव्य में सरल ढंग से समझाई है , आपको बधाई !

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  3. इस चार दिन की चाँदनी से वशीभूत होकर ही लोग सिर्री हो जाते हैं. क्या कीजिएगा?

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  4. बहुत सुन्दर ... बधाई आप को

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  5. उत्साह वर्धन के लिए आप सबका शुक्रिया ।

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