विषयों की यारी छोड़ दे ।
चार दिन की चाँदनी है ,
आखिर अंधेरा आयेगा ।
इसलिए अब हट विषयों से ,
निष्काम प्रभु से नाता जोड़ ले ।
संसार है स्वार्थ भरा ,
मूरख नहीं जनता क्या ।
बालपन गया जवानी भी गई ,
अरे! अब वृद्धता है आ गई ।
अब तो इच्छा तृष्णा मार कर ,
विषय आसक्ति से नाता तोड़ दे।
नूतन यह मानुष का तन ,
विरथा ही, हा ! खो रहा ।
चार दिन की चाँदनी है .....................
aap bilkula sacha kahtI hai.
ReplyDeletevinnie
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeletelatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
जीवन के लिए अहम सीख इस काव्य में सरल ढंग से समझाई है , आपको बधाई !
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteइस चार दिन की चाँदनी से वशीभूत होकर ही लोग सिर्री हो जाते हैं. क्या कीजिएगा?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... बधाई आप को
ReplyDeleteउत्साह वर्धन के लिए आप सबका शुक्रिया ।
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