टूटे रिश्तों की किरचियाँ ,
कभी जुड़ नहीं पातीं ,
शायद कोई जादू की छड़ी ,
जोड़ पाती ये किरचियाँ ।
ये चुभ कर निकाल देतीं हैं ,
दो बूंद रक्त की , और अधिक
चुभन के साथ बढ़ जाती है ,
पीड़ा न दिखाई देती हैं ।
चुप रह कर सह जाती हूँ ,
आँख मूँद कर देख लेती हूँ ,
शायद कोई प्यारी सी झप्पी ,
मिटा पाती ये दूरियाँ ।
काश किसी तरह मिट पाती यह दूरियाँ...
ReplyDeleteशायद ...
ReplyDeletesach kaha apne....par koshish bahut kam karte hain hum....
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteबेहतरीन
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