Monday 29 July 2013

विचार मंथन

 

आजकल ये चर्चा काफी ज़ोरों पर चल रही है कि कौन क्या खाएगा , किसको क्या खाना चाहिए , किसकी थाली कितने  रुपए की होनी चाहिए , कितने पैसे खाने पर व्यय करने वाला गरीब की श्रेणी मे नहीं आता है । किसको बासी खाना मिल रहा है , किसको गंदा औए खराब खाना मिल रहा है इस तरफ तो ध्यान देने कि फुर्सत ही नहीं है बस दो चार शब्द कह दिये ,” हमे खेद है कि ऐसा हो रहा है ।“ इसके अलावा कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है न कुछ देखने की जरूरत है बस आँख बंद कर जिये जाओ ।
कभी हमारी आवाम ने ये सोचने की जहमत उठाई कि हमारे देश मे क्या हो रहा है ? कहाँ सुधार की आवश्यकता है ? अखबारों मे समाचार पढ़ कर , टी वी पर न्यूज सुन कर काफी खून उबाल मारता है ,  है न । लेकिन सुन कर और देख कर भी बंद आंखे क्यों है ? अजी जनाब अंखे खोलिए देखिये ये कुर्सी धारी नेता हमे ही लूट कर हमारे ही देश की नस्लों को बर्बाद कर रहें है । अब आपके मन मे शायद जागा होगा,  कैसे ?  आइए देखें कैसे
तुम ,  हमारे प्यारे भारत के वरिष्ठ गणमान्य नेता गण हमारे ही देश की संतान हो जब तक कुर्सी पर विराजमान नहीं होटे हो  तब तक ही तुम्हारी  मुहब्बत , दरिया दिली सब कुछ देखते ही बनता है किन्तु जैसे ही जीते  और कुर्सी की टांग दिखाई दी ये उस टांग की चकाचौंध मे ऐसे चौंधियाते हो  कि समझ लीजिये बस अंधरिया जाते हैं कुछ भी नहीं दिखता । कसमें वादे  प्यार वफा सब बातें है , बातों का क्या ? वाली स्थिति बन जाती है । भूखे नंगे बच्चे , गरीबी मे मरते किसान , लुटती अस्मिता , असुरक्षित स्त्रियाँ , पढ़ाई के नाम होता खेल – कभी कन्या विद्या धन के नाम पर कभी लैप टॉप का खेल करते नेता गण , हमारी ही दी गई राशि का दुरुपयोग करते है यदि हम इन्कम टैक्स के नाम पर सरकार के खातों मे नहीं जमा कराएंगे तो क्या नेता अपने खातों से बाँट सकेंगे ये सारी टाफ़ियाँ।
बांटो भैया बांटो क्या फर्क तुमको पड़ता है कि जिसको लैप टॉप तुमने दिया है उसको चलाना आता भी है या नहीं , विद्याधन जो तुमने बांटा वो सही जगह इस्तेमाल हुआ कि नहीं । क्या सभी बालिकाएँ शिक्षा पा भी रहीं है या नहीं। तुमने तो टाफ़ियाँ बाँट कर कर्त्त्व्य की इति श्री कर ली । अब जाकर सो जाओ अपने अपने घरों मे । फिर कोई मुद्दा उठे तो उठ आना फिर कुछ बाँट देना । मूरख जनता यों ही टाफ़ियाँ खाती रहेगी ।
थालियों से खाना तक छीन रहे हो ऐसे मे जो दिन भर मजदूरी करता है उसका पेट कैसे भरेगा क्या दो पतली सी रोटी और एक छुटटंकी कटोरी भर दाल से उसका पेट भर जाएगा क्या मेहनत के काम कर पाएगा । क्या एक मुट्ठी चावल और एक चमचा दाल से उस मजदूर का पेट भर सकोगे तुम । जो तुम्हारे बंगले बनाने के लिए दिन रात जी तोड़ मेहनत करता है न उसे ठंड लगती है न उसे धूप लगती है न वह बारिश मे भीगता है क्योकि वो तो पैदाइशी मजदूर है उसका शरीर तो किसी और मिट्टी से बना है शायद ।
वो मेहनत करता है ताकि तुम चैन से ए सी लगाकर बैठ सको , वो मेहनत करता है ताकि तुम आराम से सभयेन कर सको । वो मेहनत करता है कि वो खुद के लिए भी दो रोटी कमा ले , वो मेहनत करता है ताकि उसके बच्चे भी कुछ पढ़ लिख लें और उसके जैसे न बने । लेकिन तुम तो शायद उसको ही क्या पूरे देश को ही मजदूर बना के छोड़ोगे । जब उसका पेट नहीं भरेगा तो वो चोरियाँ करेगा , डाके डालेगा , हत्याएँ करेगा । आगे चल कर उसका बच्चा भी वही करेगा । पेट्रोल की दिन प्रतिदिन बढ़ती कीमतें , दिन प्रतिदिन बढ़ता किराया आम आदमी कहाँ से पूरा करेगा इस तरफ भी सोचा है कभी । या गूंगे बहरे और अंधे हो चुके हो । धृतराष्ट्र आँख से अंधे थे और पुत्र मोह मे पूर्णान्ध थे । गांधारी ने उनकी खुशी के लिए आँख पर पट्टी बांध ली थी । यहाँ तुम तो मदान्ध हो चुके हो।
तुम्हारी गलतियों के कारण मारे गए बच्चों की माँओं की चीखे नहीं सुन पाये क्या ? कहने को नस्ल सुधार रहे हो। पर बुरा न मानना नेता जी प्लीज ! तुम देश की नस्लों को बर्बाद कर रहे हो । और बुरा मान भी जाओ तो मान जाओ । तुम हमारी कौन सी फिक्र करते हो जो हम तुम्हारी करें ।
ये तो मिड डे मील की कहानी थी । अब तुमको सुनती हूँ उन बड़े कालेजों की कहनी जहां माता पिता अपने बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य एवं शिक्षण हेतु दोनों हाँथों से पैसा लुटाते है कि हमारा बच्चा हमसे दूर होगा अच्छा पैसा देने पर कालेज मे स्वास्थ्य वर्धक खाना तो मिलेगा लेकिन यहाँ भी वही धांधली । बच्चों से पैसा तो खूब लेते है ये लोग लेकिन भोजन के परोसे जाते समय अंधे होकर परोस दिया जाता है । सुबह कि बासी दाल मे शाम की सब्जी मिला दी लो भैया हो गई नई डिश तैयार । खाना बनाने मे वहाँ के कुक तो शेफ संजीव कपूर को भी फेल कर दें।
आटा बच गया कोई बात नहीं शाम को उसी बजबजाते आटे की रोटी बना कर खिला देंगे । नहीं खाओगे तो कहाँ जाओगे भाई , मजबूरी है । ज्यादा शिकायत करने लगो तो एक दो दिन ठीक हो जाएगा फिर वही हालत । क्या कर लोगे भाई । बच्चे तो पढाना ही है ।
"जाही विधि रखे राम ताही विधि रहिए । बस आँख मूँद लीजिये अरु ध्यान न दीजिये ॥"



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