Wednesday, 26 June 2013

" सुन लेते यदि "

सुन लेते यदि धरती की पुकार ,
न होती ऐसी विषम गुहार ,
न गूँजता आर्तनाद ,
न होता भीषण संहार ,
जो बोया वही पाया । 

धरा और धारा ने ,
वही तो है लौटाया ,
फर्क बस इतना सा कि ,
कष्ट उनका हमे न दिखता था ,
उनको हमारा कष्ट भी है रुलाता । 

नूतन आज ही चलो करें प्रतिज्ञा ,
न करेंगे धरती का दोहन ,
न तोड़ेंगे पर्वत पहाड़,
बस अब लगाएंगे वृक्ष अपार । 

24 comments:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 29/06/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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    1. जी यशोदा जी , जरूर । आपका आभार , मेरी कविता दूर दूर तक पहुंचे वे सब भी सुने जिनहे धरती का रोदन न सुनाई देता है ।

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  2. नूतन आज ही चलो करें प्रतिज्ञा ,
    न करेंगे धरती का दोहन ,
    न तोड़ेंगे पर्वत पहाड़,
    बस अब लगाएंगे वृक्ष अपार । ... बहुत सुंदर रचना अन्नपूर्णा जी... बधाई

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    1. मीना जी नमस्कार , और धन्यवाद उत्साह वर्धन के लिए ।

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  3. बहुत आभार शर्मा जी ।

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  4. सार्थक सन्देश के साथ बेहतरीन रचना ! बहुत सुंदर !

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  5. bhut sundar .......rachana achchhi lagi

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  6. पर्यावरण संगरक्षण जरुरी.... सुंदर रचना !!

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  7. आपकी यह रचना कल दिनांक 27.06.2013 को http://blogprasaran.blogspot.com पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  8. bilkul sahi kaha apne....sundar prastuti

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  9. आप सभी मित्रों का हार्दिक आभार उत्साह वर्धन के लिए ।

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  10. प्रकृति ने चेतावनी दी है. उम्मीद है सब जाग जाएँ. सुन्दर रचना.

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  11. जरूरत है इस प्रति‍ज्ञा की..

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  12. सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ....
    शुभकामनायें ॰

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  13. सुन्दर
    अभिव्यक्ति

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