फूल भी कभी कहेंगे क्या? उफ !!!!
तोड़ो मरोड़ो फेकों ये,
बिखर कर भी मुस्कराएंगे ,
तन्हा तन्हा धराशायी फूल भी
कभी कहेगे क्या उफ !!!
जीवन इनका मुस्कुराना,
खिलना हँसना और मिट जाना ,
खिलते मिटते फूल भी ,
कभी कहेंगे क्या उफ !!!!
अपने अधरों की लाली ,
देकर भी हैं मुसकाते फूल,
काँटों मे खिलकर भी हैं,
जगाते कोमल स्पर्श का अहसास,
क्या फूल भी रोते हैं ,
शायद हाँ, पर हम देख न पाते ,
ऐ फूल ! तू कुछ कुछ है
नारी के जैसा ,
"नूतन" दोनों की व्यथा एक,
क्या दोनों कभी कहेंगे उफ!!!!!!
Bahut achi kavita hain.............
ReplyDeleteफूल और नारी की व्यथा के संग-संग नारी द्वारा किए गये शोषण के शिकार पुरुषों की व्यथा पर भी कोई कविता आप बनाएँ और हम उसे फिर से आपके ब्लॉग पर उसे पढ़ने आएँ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना,आभार.
ReplyDeleteउफ
ReplyDeleteनारी बिखर कर मुसकुराती नहीं ..... व्यथा को पी जाती है ....
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteगहन अनुभूतियों को सहजता से
व्यक्त किया है आपने अपनी रचना में
सार्थक रचना
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspotin
में भी सम्मलित हों ख़ुशी होगी