सरकार, महिला संगठनों के तथा विभिन्न स्तरो पर लोगों के सामूहिक और सतत प्रयासों का नतीजा है कि महिलाएं एक ताकत के रूप मे उभर रहीं है । महिलाओं के लिए समानता के अधिकारों की लड़ाई अभी भी जारी है किन्तु समानता का अधिकार अभी तक पूरी तरह मिल नहीं पाया है । पितृ सत्तात्मक और पुरुष प्रधान समाज मे महिलाएं अभी भी अपने अधिकार पाने की कोशिश मे लगीं हैं । महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा उनकी नकारात्मक स्थिति का द्योतक है । यह हिंसा उनकी कोशिशों और समाज मे अपने स्थान की ओर बढ़ते कदम को रोकने और छिपा हुआ विरोध प्रदर्शन मात्र है । देखना यह है कि कैसे शिक्षा , जागरूकता और क़ानूनों के जरिये महिलाओं कि सामाजिक स्थिति को मजबूत कर उनके प्रति हो रही हर प्रकार की हिंसा को कम किया जाय यह एक बड़ी चुनौती है ।
देश की जन संख्या का स्वरूप बदल रहा है, लड़कियों की संख्या घटने से लिंग अनुपात गड़बड़ा गया है । शिक्षा के क्षेत्र मे उनकी स्थिति पहले से सुधरी है पर अभी भी वह पुरुषों के मुक़ाबले पीछे ही है । कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है :-
1) महिलाओं के पास राजनैतिक भागीदारी के मौके नहीं हैं ।
2) वैधानिक वरिष्ठता क्रम मे स्थान पीछे है ।
3) महिलाओं के लिए वित्तीय स्त्रोत काफी कम हैं या कहीं कहीं है भी नहीं।
4) घरेलू मामलों मे बराबरी का दर्जा भी कहीं कहीं न के बराबर है और कहीं पर बिलकुल नहीं है ।
5) महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण भी काफी कमजोर है या रूखा है ।
6) स्वतन्त्रता से निर्णय लेने का हक़ महिलाओं को आज भी नहीं है ।
7) अधिकतर देखने मे आता है की महिलाएं स्वयं ही संगठित नहीं है , इसलिए वे अलग थलग पड़ जाती है ।
महिलाएं आज भी पुरुषों पर ही निर्भर हैं चाहे वह पिता हो, भाई हो , पति हो , पुत्र हो । तो समानता अधिकार देने की पहल पुरुषों को ही करनी होगी । यह पिता से आरंभ हो सकता है जैसा कि कानून भी बन चुका है , पिता अपनी संपत्ति का बराबर का हिस्सा अपनी सभी संतानों मे बाँट सकता है चाहे बेटा हो या बेटी । बेटी यदि चाहे तो ले न चाहे तो न ले । यहाँ यदि पिता स्वेच्छा से अपनी संपत्ति मे बराबर का हिस्सा अपनी पुत्री के नाम भी करता है जिस प्रकार बेटों के लिए करता है तो वह अपनी बेटी को एक मजबूती प्रदान कर पाएगा । दहेज मे दी जाने वाली रकम की जगह यदि बेटी के नाम कुछ संपत्ति का हिस्सा होगा तो बेटी इज्जत स्वयं ही बढ़ जाएगी और उसकी स्थिति भी मजबूत होगी। उसी प्रकार पति भी अपनी संपत्ति का चौथाई हिस्सा अपनी पत्नी के नाम कर सकता है
जिसको पत्नी अपनी स्वेच्छा से आगे चलकर बहू के नाम कर सकती है और इस तरह आगे वह बहू को मजबूती दे पाएगी । संपत्ति भी घूम फिर कर घर मे ही रहेगी जो कि स्त्री धन कहलाएगा जिस पर केवल स्त्री का ही हक़ होगा । जिस प्रकार पुरुष अपनी संपत्ति अपने बेटों के नाम करते है यही सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया है, उसी तरह महिलाएं अपनी संपत्ति का हिस्सा बेटों के नाम न कर बेटी और बहू के नाम करे ये असल मे स्त्री धन होगा ,इसमे कुछ बदलाव कर महिलाओं कि स्थिति को मजबूत बनाया जा सकता है । ये भी एक समानता का अधिकार ही होगा ।
यदि हम सच मे महिला सशक्तिकरण की बात करते है और उनका उत्थान चाहते है तो हमे कहीं से एक नई शुरुआत करनी ही होगी । ये तो हुई संपत्ति मे अधिकार की बात । अगला कदम जो कि पहला ही होना चाहिए, हमे शिक्षा का उठाना होगा और उन दूर दराज क्षेत्रों मे, जहां अभी महिलाओं को घूँघट से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है उन क्षेत्रों मे भी महिलाओं के लिए शिक्षा को अनिवार्य करना होगा । इस प्रकरण मे हमारे एन जी ओ काफी सहायक हो सकते हैं । सरकार के द्वारा भी ऐसा नियम लागू किया जाना चाहिए ।
सही मायनो मे हम तभी महिला सशक्तिकरण कर पाएंगे ।
देश की जन संख्या का स्वरूप बदल रहा है, लड़कियों की संख्या घटने से लिंग अनुपात गड़बड़ा गया है । शिक्षा के क्षेत्र मे उनकी स्थिति पहले से सुधरी है पर अभी भी वह पुरुषों के मुक़ाबले पीछे ही है । कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है :-
1) महिलाओं के पास राजनैतिक भागीदारी के मौके नहीं हैं ।
2) वैधानिक वरिष्ठता क्रम मे स्थान पीछे है ।
3) महिलाओं के लिए वित्तीय स्त्रोत काफी कम हैं या कहीं कहीं है भी नहीं।
4) घरेलू मामलों मे बराबरी का दर्जा भी कहीं कहीं न के बराबर है और कहीं पर बिलकुल नहीं है ।
5) महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण भी काफी कमजोर है या रूखा है ।
6) स्वतन्त्रता से निर्णय लेने का हक़ महिलाओं को आज भी नहीं है ।
7) अधिकतर देखने मे आता है की महिलाएं स्वयं ही संगठित नहीं है , इसलिए वे अलग थलग पड़ जाती है ।
महिलाएं आज भी पुरुषों पर ही निर्भर हैं चाहे वह पिता हो, भाई हो , पति हो , पुत्र हो । तो समानता अधिकार देने की पहल पुरुषों को ही करनी होगी । यह पिता से आरंभ हो सकता है जैसा कि कानून भी बन चुका है , पिता अपनी संपत्ति का बराबर का हिस्सा अपनी सभी संतानों मे बाँट सकता है चाहे बेटा हो या बेटी । बेटी यदि चाहे तो ले न चाहे तो न ले । यहाँ यदि पिता स्वेच्छा से अपनी संपत्ति मे बराबर का हिस्सा अपनी पुत्री के नाम भी करता है जिस प्रकार बेटों के लिए करता है तो वह अपनी बेटी को एक मजबूती प्रदान कर पाएगा । दहेज मे दी जाने वाली रकम की जगह यदि बेटी के नाम कुछ संपत्ति का हिस्सा होगा तो बेटी इज्जत स्वयं ही बढ़ जाएगी और उसकी स्थिति भी मजबूत होगी। उसी प्रकार पति भी अपनी संपत्ति का चौथाई हिस्सा अपनी पत्नी के नाम कर सकता है
जिसको पत्नी अपनी स्वेच्छा से आगे चलकर बहू के नाम कर सकती है और इस तरह आगे वह बहू को मजबूती दे पाएगी । संपत्ति भी घूम फिर कर घर मे ही रहेगी जो कि स्त्री धन कहलाएगा जिस पर केवल स्त्री का ही हक़ होगा । जिस प्रकार पुरुष अपनी संपत्ति अपने बेटों के नाम करते है यही सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया है, उसी तरह महिलाएं अपनी संपत्ति का हिस्सा बेटों के नाम न कर बेटी और बहू के नाम करे ये असल मे स्त्री धन होगा ,इसमे कुछ बदलाव कर महिलाओं कि स्थिति को मजबूत बनाया जा सकता है । ये भी एक समानता का अधिकार ही होगा ।
यदि हम सच मे महिला सशक्तिकरण की बात करते है और उनका उत्थान चाहते है तो हमे कहीं से एक नई शुरुआत करनी ही होगी । ये तो हुई संपत्ति मे अधिकार की बात । अगला कदम जो कि पहला ही होना चाहिए, हमे शिक्षा का उठाना होगा और उन दूर दराज क्षेत्रों मे, जहां अभी महिलाओं को घूँघट से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है उन क्षेत्रों मे भी महिलाओं के लिए शिक्षा को अनिवार्य करना होगा । इस प्रकरण मे हमारे एन जी ओ काफी सहायक हो सकते हैं । सरकार के द्वारा भी ऐसा नियम लागू किया जाना चाहिए ।
सही मायनो मे हम तभी महिला सशक्तिकरण कर पाएंगे ।
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का लिंक आज शुक्रवार (05-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का लिंक आज शुक्रवार (05-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच-1205 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
Interesting thougghts
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