Monday, 22 April 2013

आज , समाज और महिला

 आज की घटनाओं को  देख कर मन बड़ा द्रवित हो उठता है, आज भी सोच वही की वही ही है , वो नहीं बदली है और शायद न बदलेगी । फिर चाहे कोई उम्र हो कोई भी समय हो । कितने भी वादे कर लिए जाएँ , कितने भी नियम व कानून बना दिये जाएँ । नियम क़ानूनों का  क्या है वो बस बना कर डिब्बे मे डालने के लिए ही होते है । कितनी देर लगती है उन्हे तोड़ते मरोड़ते। उल्टा समय आने पर भूल भी  जाया जाता है । ये बात आम जनता से लेकर शीर्ष पर बैठे नेताओं तक लागू होती  है । आज बड़ी जोश और खरोश से महिलाए सड़कों पर उतर कर क्या मांग रहीं है, शायद ये समझने का विषय है । कठोर कानून बनाया जाना चाहिए। किस किस बात के कठोर कानून बनेंगे, कानून बनाने वाले कानों मे तेल डाल कर चैन से बैठे हैं और बैठे ही रहेंगे, कितने भी  धरना प्रदर्शन कर लिए जाएँ। आज  यहाँ तो कल वहाँ धरना प्रदर्शन, नतीजा जीरो। ऊंचे महलों मे रहने वालों के कानों मे  जूं  तक न रेंगेगी। बल्कि ज्यादा शोर सुनाई देगा तो लाठी चार्ज कर दिया जाएगा, मुंह बंद कर दिया जाएगा। क्या कर लोगे भाई ?   
एक पुलिस अफसर ने एक लड़की को तमाचा मारा सबने देखा, मीडिया ने भी बड़े अच्छे से कवर किया , पर किस बात पर मारा क्या वो सुनाई दिया , ताली एक हाथ से नहीं बजती । जिस बात पर थप्पड़ मारा गया -शायद वो एक पिता था जिसने मारा । पिछली बार दामिनी केस के वक्त एक नेता जी ने कहा की लड़कियां कपड़े ही ऐसे पहनतीं हैं जिससे ऐसी वारदातों का अंजाम सामने आता है । यहाँ नेता जी नाम उजागर करना मै बिलकुल जरूरी नहीं  समझती । अब यहाँ इस छोटी सी बच्ची के सिलसिले मे उन नेता जी क्या कहना हो सकता है। 
आज भी लड़कियां क्या करें , कहाँ जाएँ , क्या कपड़े पहने , कैसे चले, क्या सोचे ये सभी बातें हमारा समाज ही तय करता है। आज शायद वे लोग ज्यादा खुश होंगे जो ये कहते है कि " इसीलिए हम बेटी नहीं चाहते या कन्या भ्रूण हत्या और बच्ची  की हत्या जैसा जघन्य अपराध करते है। वे अपनी बात को सही करार देते हुए ये कह सकते है कि कन्याएँ मुसीबत की जड़ है ।
 इस बात  की तह मे चलते हैं  शुरुआत कहाँ से होती है, पहले जमाने से आज तक स्त्री के प्रति सोच एक स्त्री द्वारा ही बनाई गई है बेटा महान बेटी बेकार, की सोच एक माँ ही अपने बच्चो मे समय दर समय डालती आई है। माँ ने ही अपने बेटे को अपनी ही कोख जाई बेटी  का  सम्मान करना नहीं सिखाया। बेटा घर चिराग है, बेटी को बेटों की सेवा करना चाहिए, ऐसे ही तमाम कथन जो बेटे को सुपर और बेटी को हेय बनाते हैं। इन सोचों का लबादा पहने ऐसे बेटे बाहर निकल कर किसी भी बेटी को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते उनके लिए स्त्री भोग्या ही है। ऐसी कुत्सित सोच को दूर करने का जड्मूल प्रयास होना चाहिए । जो कि बेहद जरूरी है , सर्वप्रथम महिलाओं को अपनी सोच बदलने की जरूरत है अपने बेटों को ये बताने की जरूरत है कि स्त्री मात्र एक कठपुतली ही नहीं है जिसे बेटे चाहे जैसे इस्तेमाल करें  बल्कि  स्त्री वो है जो मकान को घर बनाती है, बेटियाँ बगिया का कोमल सुंदर फूल है जिनको सहेजना हर बेटे का काम है उसे तोड़ मरोड़ कर मसल कर फेंक देना ये असभ्यता की निशानी है । बेटे की कुत्सित मानसिकता को छुपाएँ नहीं बल्कि उसका इलाज करवाएँ । ये भी मानसिक बीमारी है जिसका इलाज हर संभव प्रयत्न कर किया जाना अत्यंत आवश्यक है। हर माँ से मेरी प्रार्थना है कि वह बेटी व बेटे मे फर्क न करे । इससे पहले के लेखों मे भी मैंने महिलाओं की सोच को बदलने की बात लिखी है । एक महिला ही है जो पुरुषों के व्यवहार को बदल सकती है ।   
बरसों से चली आ रही इस सोच का बदलने काम आरंभ तो हुआ है किन्तु अभी केवल कुछ प्रतिशत ही हो पाया है अभी भी अस्सी प्रतिशत बदलाव होना बाकी है। मेरी हर उस महिला से गुजारिश है जो बेटी और बेटे मे फर्क करती है को अब बदलने की आवश्यकता है तभी वह अपना स्थान समाज मे सुरक्षित कर पाएगी । 
स्त्री ईश्वर की रचना की सबसे सुंदरतम कृति है , स्त्री को स्वयं का सम्मान करना सीखना ही होगा । सम्मान मांगने से कभी नहीं मिलता , सम्मान मिलता है स्वयं को काबिल बनाने से ।
           

8 comments:

  1. सुन्दर ,समयिल्क ,सटीक लेख .हर माँ यह सिख लें की बेटा,बेटी में अंतर करना महा पाप है
    latest post सजा कैसा हो ?
    latest post तुम अनन्त
    l

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    1. डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
      अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को, अनुभव करे मेरी अनुभूति को
      latest post बे-शरम दरिंदें !
      latest post सजा कैसा हो ?

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    --
    शस्य श्यामला धरा बनाओ।
    भूमि में पौधे उपजाओ!
    अपनी प्यारी धरा बचाओ!
    --
    पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!

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  3. वर्तमान का सच गहन अभिव्यक्ति
    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  4. हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा ,समाज बदलेगा तो समस्त मनुष्य जाति उन्नति के पथ पर अग्रसर हो पायेगा ,देश की उन्नति होगी ...सवाल यह है कि कब और कैसे ?
    .........बहुत सटीक लेख
    http://boseaparna.blogspot.in/

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  5. समाज को बड़े स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है .........हमें अपने अन्दर झाँकना होगा
    अपने से ही शुरू करना होगा .............एक- दूसरे से कहने की बजाय ...स्वयं को टटोले ..........

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  6. बेटे को अधिकार और बेटी को कर्तव्य शिक्षा बंद करनी होगी ...........दोनों को समाज का हिस्सा बनना है ..............समाज बदले .........पुलिस बदले .........कानून लागू हो .........अगर सब अपने में बदलाव लाये तो ......... कानून की आवश्यकता ही न हो ............
    ..
    सबसे बड़ी बात अभाव गरीबी .....अशिक्षा .......देश में बुनियादी बदलाव चाहिए .........

    देश कमज़ोर नीव की एक ऐसी जर्जर इमारत है जिसे ऊपर से चमका दिया गया है ............
    यही जड़ है अपराधों की ....................

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  7. Appropriate to the today's situation.
    Please over to my blog http://www unwarat.com & after reading my stories & articles please give your comments.
    vinnie,

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