एक प्रोजेक्ट के सिलसिले मे मुझे गाँव मे जाना था और आंकड़े बनाने थे कि ग्रामीण समाज मे आज कितना बदलाव हुआ है । महिलाओं की स्थिति मे कितना फर्क आया है उनकी शिक्षा आर्थिक स्थितियाँ , सामाजिक स्थितियाँ , स्वास्थ्य इत्यादि कितना तरक्की कर पाया है । जब मै गाँव मे महिलाओं से मिली मुझे बड़ा आश्चर्य इस बात का हुआ कि ज्यादा तर महिलाएं अभी भी लंबा सा घूँघट निकालती हैं और बाहर निकलने की भी मनाही है ,पढ़ाई लिखाई तो दूर कि बात है समाज मे उनका स्थान अभी भी वहीं का वहीं है। खेतों मे काम करने वाली महिलाओं को भी पुरूष मजदूरों की अपेक्षा कम मजदूरी मिलती है, स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है और जहां कही है भी वहाँ या तो चिकित्सक उपलब्ध नहीं है या उपलब्ध है तो वे बिना देखभाल किए सिर्फ अपना पैसा बना रहे हैं अस्पतालों मे दवाइयाँ नहीं है। सरकार से मिलने वाला भत्ता पूरी तरह से वहाँ पहुंचता ही नहीं । स्कूल के नाम पर कहीं कहीं टूटी फूटी इमारत है कहीं स्कूल तो हैं पर उनमे पढ़ने वाले लोग नहीं है । लोग पढ़ने की बजाय काम करना ज्यादा उचित समझते हैं। आँगनवाड़ी के कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को शिक्षित किया जाना था किन्तु ये भी आधे अधूरे ही है। प्रौढ़ शिक्षा एवं रात्री कक्षाओं के मधायम से भी उन सभी अशिक्षितों को शिक्षित किया जाना था। कुछ दिनों इन कक्षाओं मे कोई पढ़ने नहीं गया फिर इक्का दुक्का लोग ही गए और इन कक्षाओं मे भी ताला ही लग गया । एक महिला क्या पहनेगी कैसे कपड़े पहनेगी ये सभी बातें घर कि बड़ी बूढ़ियाँ तय करती है या फिर समाज । बाहर जाने पर कितनी देर तक ही उसे बाहर रहना है ये सब भी महिला स्वयम नहीं तय करती है । शायद मेरा लेख एक वर्ग विशेष पर आरोपित हो सकता है किन्तु जो यथार्थ मैंने देखा , कड़वा था पर सच था।
आजादी से आज तक के लंबे समय मे विकास योजनाओं मे महिला के प्रति दृष्टिकोण कल्याण से खिसक कर मानव कल्याण पर आ गया है।
आजादी से आज तक के लंबे समय मे विकास योजनाओं मे महिला के प्रति दृष्टिकोण कल्याण से खिसक कर मानव कल्याण पर आ गया है।
यही सच्चाई है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छे | सार्थक लेखन |
ReplyDeleteराम नवमी और नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2067, युगाब्द 5112,शक संवत् 1932 तदनुसार 16 मार्च 2010 , धरती मां की 1955885111 वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ, भगवान राम का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर संवत की शुरुवात, विक्रमादित्य का दिग्विजय, वासंतिक की हार्दिक शुभकामनायें |
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Tamasha-E-Zindagi
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आप का लेख,"महिलायें और समाज" पढ़ा।उस में व्यक्त विचार मन को छू गये। आप ने गाँव में रहने वाली भारतीय नारी की दशा का सच्चा वर्णन किया है।
ReplyDeleteअभी मेरे ब्लोग "Unwarat.com" पर आइये। अभी-अभी मैंने "रेखाओं की करवट" कहानी लिखी है। उस में गृहणी को उस के कर्तव्य का बोध कराने कि कोशिश कीजिये।कृपया,पढ़ने के बाद कहानी के अन्त में उठाये ग्ये प्रश्न के उत्तर में अपने विचार व्यक्त कीजियेगा।
धन्यवाद,
विन्नी
आप का लेख,"महिलायें और समाज" पढ़ा।उस में व्यक्त विचार मन को छू गये। आप ने गाँव में रहने वाली भारतीय नारी की दशा का सच्चा वर्णन किया है।
ReplyDeleteअभी मेरे ब्लोग "Unwarat.com" पर आइये। अभी-अभी मैंने "रेखाओं की करवट" कहानी लिखी है। उस में गृहणी को उस के कर्तव्य का बोध कराने कि कोशिश कीजिये।कृपया,पढ़ने के बाद कहानी के अन्त में उठाये ग्ये प्रश्न के उत्तर में अपने विचार व्यक्त कीजियेगा।
धन्यवाद,
विन्नी
आपकी बातों में सच्चाई है,ऐसा ही हो रहा है.
ReplyDeleteतो क्या गांव में लड़कियां पढ़ने नहीं जातीं?
ReplyDeleteआप सभी का धन्यवाद।
ReplyDeleteआपके विचार वाकई सशक्त हैं
ReplyDeleteहम कितनी भी बड़ी- बड़ी बातें कर लें लेकिन ...सच्चाई यही है ...
ReplyDeleteपधारें "आँसुओं के मोती"