आज की दुनिया मे शिक्षा और विकास का मुख्य संबंध है । विकास का सीधा संबंध महिलाओं से है । यदि महिलाए सुशिक्षित है तो वे सुशिक्षित समाज की रचना कर सकती है । दुनिया मे महिलाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता । शहरों मे फिर भी महिलाएं पढ़ी लिखी होती है पर उन्हे सुशिक्षित नहीं कहा जा सकता । क्योंकि ये एक बहुत बड़ा शब्द है और काफी अर्थपूर्ण भी है ।
पठन पाठन से मस्तिष्क के सुप्त द्वार खुल जाते है और सोच भी सकारात्मक हो जाती है । किन्तु कहीं कहीं हम ये देखते हैं कि शिक्षा अहंकार का विषय बन जाती है । अपने से कम पढ़े व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखा जाता है । शिक्षा हमें विनम्रता सिखाती है न कि उड़ंदता । अतः शिक्षा जीवन का महत्तवपूर्ण अंग होना चाहिए ।
स्टेटस सिंबल नहीं ।
1975 मे महिला वर्ष के दौरान उन नीतियों और कार्यक्रमों पर विचार हुआ जो कि महिलाओं के विकास मे सहायक सिद्ध हो सकें।
वे अपनी भूमिका बेहतर तरीके से निभा सके इसके लिए उन्हे जरूरी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । इससे उनकी कार्यक्षमता का विकास होगा और उनका अपना जीवन स्तर भी सुधरेगा। संतानों को अच्छे संस्कार मिलेंगे , बेहतर जीवन शैली सीख पाएंगे साथ ही मानसिक स्तर मे भी इजाफा होगा । घरों की खिट खिट से ऊपर उठ कर कुछ अलग सोचने का नजरिया उत्पन्न होगा । परिवार व समाज मे उनका दोयम दर्जा तभी धीरे धीरे खत्म किया जा सकेगा, जब वे स्वयं शिक्षित होंगी ।
भारत मे आधी से ज्यादा आबादी महिलाएँ गांवो मे रहती है, जहां उन्हे बिना घूँघट घर से बाहर जाने की भी इजाजत नहीं है शिक्षा तो उनसे कोसों दूर है । हमे अपने सोचने के नजरिए को बहुत अधिक बदलने जरूरत है । उन महिलाओं को शिक्षित करने की जरूरत है जो ये कहतीं है कि - " हम क्या करेंगे पढ़ कर , बस बच्चे पढ़ जाने चाहिए ।" पर मै ये कहती हूँ कि - "जी नहीं बच्चे और आप दोनों ही पढे लिखे सुशिक्षित होने चाहिए तभी हम सुसंस्कृत समाज कि नींव रख पाएंगे ।
इसके लिए हमे महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना होगा, उनकी नकारात्मक सोचों को सिरे से खारिज करना होगा ,उनकी आलोचनात्मक और सकारात्मक सोच को प्रोत्साहन देना होगा ताकि वे अपनी सामर्थ्य को पहचाने और सही फैसले ले सके । मै यहाँ उन तमाम महिलाओं का जिक्र कर रही हूँ जो आज भी शिक्षा से वंचित ही नहीं अनभिज्ञ भी है । इतनी तरक्की होने के बाद भी महिलाए अपनी भूमिका से , अपने अस्तित्त्व से अनजान हैं ।
हमे प्रयास कर उन पिछड़ी हुई महिलाओं को शिक्षित करना होगा। महिलाओं के लिए ये सोच कि - कौन सा इन्हे घर के बाहर जाकर नौकरी करनी है, को बदलना ही होगा। एक सुशिक्षित महिला ही सुशिक्षित परिवार कि संरचना करती है । इस सोच को अधिक से अधिक प्रसार और प्रचार की जरूरत है।
पठन पाठन से मस्तिष्क के सुप्त द्वार खुल जाते है और सोच भी सकारात्मक हो जाती है । किन्तु कहीं कहीं हम ये देखते हैं कि शिक्षा अहंकार का विषय बन जाती है । अपने से कम पढ़े व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखा जाता है । शिक्षा हमें विनम्रता सिखाती है न कि उड़ंदता । अतः शिक्षा जीवन का महत्तवपूर्ण अंग होना चाहिए ।
स्टेटस सिंबल नहीं ।
1975 मे महिला वर्ष के दौरान उन नीतियों और कार्यक्रमों पर विचार हुआ जो कि महिलाओं के विकास मे सहायक सिद्ध हो सकें।
वे अपनी भूमिका बेहतर तरीके से निभा सके इसके लिए उन्हे जरूरी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । इससे उनकी कार्यक्षमता का विकास होगा और उनका अपना जीवन स्तर भी सुधरेगा। संतानों को अच्छे संस्कार मिलेंगे , बेहतर जीवन शैली सीख पाएंगे साथ ही मानसिक स्तर मे भी इजाफा होगा । घरों की खिट खिट से ऊपर उठ कर कुछ अलग सोचने का नजरिया उत्पन्न होगा । परिवार व समाज मे उनका दोयम दर्जा तभी धीरे धीरे खत्म किया जा सकेगा, जब वे स्वयं शिक्षित होंगी ।
भारत मे आधी से ज्यादा आबादी महिलाएँ गांवो मे रहती है, जहां उन्हे बिना घूँघट घर से बाहर जाने की भी इजाजत नहीं है शिक्षा तो उनसे कोसों दूर है । हमे अपने सोचने के नजरिए को बहुत अधिक बदलने जरूरत है । उन महिलाओं को शिक्षित करने की जरूरत है जो ये कहतीं है कि - " हम क्या करेंगे पढ़ कर , बस बच्चे पढ़ जाने चाहिए ।" पर मै ये कहती हूँ कि - "जी नहीं बच्चे और आप दोनों ही पढे लिखे सुशिक्षित होने चाहिए तभी हम सुसंस्कृत समाज कि नींव रख पाएंगे ।
इसके लिए हमे महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना होगा, उनकी नकारात्मक सोचों को सिरे से खारिज करना होगा ,उनकी आलोचनात्मक और सकारात्मक सोच को प्रोत्साहन देना होगा ताकि वे अपनी सामर्थ्य को पहचाने और सही फैसले ले सके । मै यहाँ उन तमाम महिलाओं का जिक्र कर रही हूँ जो आज भी शिक्षा से वंचित ही नहीं अनभिज्ञ भी है । इतनी तरक्की होने के बाद भी महिलाए अपनी भूमिका से , अपने अस्तित्त्व से अनजान हैं ।
हमे प्रयास कर उन पिछड़ी हुई महिलाओं को शिक्षित करना होगा। महिलाओं के लिए ये सोच कि - कौन सा इन्हे घर के बाहर जाकर नौकरी करनी है, को बदलना ही होगा। एक सुशिक्षित महिला ही सुशिक्षित परिवार कि संरचना करती है । इस सोच को अधिक से अधिक प्रसार और प्रचार की जरूरत है।
शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती |जरूती नहीं की कोइ भी धन प्राप्ति के लिए शिक्षा ले |शिक्षा धर में बच्चों की प्रगति के लिए आवश्यक है |शिक्षित महिला अपने बच्चों का पालन पोषण ठीक प्रकार से कर सकती है |परिष्कृत व्यक्तित्व उसे सक्षम बनाता है जागरूप बनाता है |
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ReplyDeleteदिनांक 21/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!