प्राचीन काल से ही हम ये देखते आए है कि महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जाता रहा है और इन्हे हमारे पुरुष प्रधान समाज मे पुरुषों के हाथ के कठपुतली माना गया है। महिलाए अपनी निजी पहचान से वंचित है और इन्हे हमेशा पिता , पति या पुत्र की संपत्ति के रूप मे देखा गया है । इसे कभी भी जीवन साथी के रूप मे नहीं देखा जाता बल्कि इसे तो महज प्रयोग की जाने वाली वस्तु ही समझा जाता है । इसी लिए पुरुष प्रतिपक्षों से इसे घोर अपराध और अत्याचार का सामना करना पड़ता है। ऐसी हिंसा और शोषण से बचाने के लिए और इनके वैध अधिकारों के संवर्धन के लिए , भारत सरकार ने पहले विविध दंड संबंधी सिविल और श्रम कानून बनाए थे , जिन्हे सामाजिक विधान कहते है । इन सामाजिक विधानों के प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू करके सही मायने मे महिलाओं का आत्म विकास संभव है और सही मायनो मे भारत जैसे महान देश के नागरिक होने के नाते और महिला के रूप मे इनके लक्ष्यों और आकांक्षाओं को भली भांति पूरा किया जा सकता है । लेकिन , हमारे देश की तमाम महिलाएं ऐसे कानूनों के विविध प्रावधानों के प्रति जागरूक नहीं है , जिसकी वजह से वे अपने अधिकारो के प्रति ज़ोर देने की स्थिति मे भी नहीं हैं । इसके लिए महिला या पुरुष सामाजिक चेतना को जागृत करने की और महिलाओं को सशक्त करने के मुहिमो को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि उनका आत्मविश्वास हो और पुरुषों की भागीदारी मे इस राष्ट्र के विकास मे अधिकाधिक योगदान हो ।
पंडित नेहरू जी ने इस बात पर ज़ोर दिया था की " विधान अकेले इन गहरी जड़दार सामाजिक समस्याओं को हल नहीं कर सकता । इन्हे खत्म करने के लिए हमे अलग अलग नजरिए से देखना होगा जिसमे कानून की भूमिका अनिवार्य एवं आवश्यक रहेगी जिससे मौजूदा विकल्प पर ज़ोर दिया जा सके और जिसके पीछे एक ठोस शैक्षिक कारण और कानूनी स्वीकृति एवं सम्मति हो जो लक्ष्य को साकार करने मे सार्वजनिक राय बनाने मे मददगार हो ।"
महिलाओं के संवैधानिक अधिकार :- भारतीय संविधान वर्ष 1950 मे अस्तित्व मे आया । इसने सभी को सामाजिक , राजनैतिक और आर्थिक न्याय देने मे संविधान सभा के निर्णय से अवगत कराया गया । जिसके बाद महिलाओं को सुरक्षित और उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए संविधान ने विविध प्रावधान बनाए ।
संविधान दो तरीकों से सामाजिक न्याय पर प्रभाव डालता है ।
1) महिला / पुरुषों को ( अनुच्छेद (14)से (32) कुछ विशेष अधिकार देता है। जिन्हे अदालत द्वारा लागू किया जा सकता है ।
2) संविधान कुछ विशेष सिद्धांतों को लागू करने के लिए राज्य को निर्देश देता है जिन्हे राज्य नीति के निर्देश सिद्धान्त कहते है । न्यायालयों की भांति इन्हे लागू करने की जरूरत नहीं पड़ती , बल्कि देश के शासन मे इन्हे मौलिक घोषित किया जाता है । इसलिए नैतिक एवं राजनीतिक मूल्य इनमे निहित होते है ।
निस्संदेह मौलिक अधिकार महिला और पुरुष दोनों के लिए है , लेकिन समानता का अधिकार जो कि संविधान द्वारा सुनिश्चित मौलिक अधिकारों मे से एक हैं , महिलाओं के लिए विशेष मायने रखता है ।
संविधान के अनुच्छेद 15 (3) मे विशेष रूप से व्यक्त है कि महिलाओं के कल्याण के मद्दे नजर विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति राज्य को प्राप्त है ।
संविधान के अनुच्छेद 51 क ( च )मे व्यक्त है कि महिलाओं की प्रतिष्ठा को ठेस पंहुचाने वाले व्यवहारों को त्यागना भारत के हर एक नागरिक का कर्तव्य है ।
और भी कई कानून जैसे :-
दहेज अपराध संबंधी कानून
स्त्री अशिष्ट रूपण ( चित्रण ) संबंधी कानून
बलात्कार संबंधी कानून
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम
1986 हिन्दू , मुस्लिम ,क्रिश्चियन विवाहों से संबन्धित कानून
ये सभी कानून बनाए गए थे महिलाओं की सुरक्षा के लिए ताकि वे आवश्यकता पड़ने पर इसका लाभ उठा सकें । परंतु जानकारी के अभाव मे उन्हे लाभ नहीं मिल पाता है आज जरूरत है उन्हे उनकी सुरक्षा संबंधी कानूनों से पूरी तरह अवगत कराया जाए ।
- कुछ अंश सामाजिक संविधान पुस्तक से साभार
पंडित नेहरू जी ने इस बात पर ज़ोर दिया था की " विधान अकेले इन गहरी जड़दार सामाजिक समस्याओं को हल नहीं कर सकता । इन्हे खत्म करने के लिए हमे अलग अलग नजरिए से देखना होगा जिसमे कानून की भूमिका अनिवार्य एवं आवश्यक रहेगी जिससे मौजूदा विकल्प पर ज़ोर दिया जा सके और जिसके पीछे एक ठोस शैक्षिक कारण और कानूनी स्वीकृति एवं सम्मति हो जो लक्ष्य को साकार करने मे सार्वजनिक राय बनाने मे मददगार हो ।"
महिलाओं के संवैधानिक अधिकार :- भारतीय संविधान वर्ष 1950 मे अस्तित्व मे आया । इसने सभी को सामाजिक , राजनैतिक और आर्थिक न्याय देने मे संविधान सभा के निर्णय से अवगत कराया गया । जिसके बाद महिलाओं को सुरक्षित और उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए संविधान ने विविध प्रावधान बनाए ।
संविधान दो तरीकों से सामाजिक न्याय पर प्रभाव डालता है ।
1) महिला / पुरुषों को ( अनुच्छेद (14)से (32) कुछ विशेष अधिकार देता है। जिन्हे अदालत द्वारा लागू किया जा सकता है ।
2) संविधान कुछ विशेष सिद्धांतों को लागू करने के लिए राज्य को निर्देश देता है जिन्हे राज्य नीति के निर्देश सिद्धान्त कहते है । न्यायालयों की भांति इन्हे लागू करने की जरूरत नहीं पड़ती , बल्कि देश के शासन मे इन्हे मौलिक घोषित किया जाता है । इसलिए नैतिक एवं राजनीतिक मूल्य इनमे निहित होते है ।
निस्संदेह मौलिक अधिकार महिला और पुरुष दोनों के लिए है , लेकिन समानता का अधिकार जो कि संविधान द्वारा सुनिश्चित मौलिक अधिकारों मे से एक हैं , महिलाओं के लिए विशेष मायने रखता है ।
संविधान के अनुच्छेद 15 (3) मे विशेष रूप से व्यक्त है कि महिलाओं के कल्याण के मद्दे नजर विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति राज्य को प्राप्त है ।
संविधान के अनुच्छेद 51 क ( च )मे व्यक्त है कि महिलाओं की प्रतिष्ठा को ठेस पंहुचाने वाले व्यवहारों को त्यागना भारत के हर एक नागरिक का कर्तव्य है ।
और भी कई कानून जैसे :-
दहेज अपराध संबंधी कानून
स्त्री अशिष्ट रूपण ( चित्रण ) संबंधी कानून
बलात्कार संबंधी कानून
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम
1986 हिन्दू , मुस्लिम ,क्रिश्चियन विवाहों से संबन्धित कानून
ये सभी कानून बनाए गए थे महिलाओं की सुरक्षा के लिए ताकि वे आवश्यकता पड़ने पर इसका लाभ उठा सकें । परंतु जानकारी के अभाव मे उन्हे लाभ नहीं मिल पाता है आज जरूरत है उन्हे उनकी सुरक्षा संबंधी कानूनों से पूरी तरह अवगत कराया जाए ।
- कुछ अंश सामाजिक संविधान पुस्तक से साभार
.सार्थक जानकारी भरी पोस्ट .आभार ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर . .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात WOMAN ABOUT MAN
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी पूर्ण आलेख अननु बहूत जरूरत है इन अधिकारों की जानकारी होना जो हमें से बहुत कम लोगों को होगी...क्यूंकि कभी जरूरत ही नहीं पड़ी इस ओर ध्यान देने कि आभार
ReplyDeleteसुन्दर और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा आज 14-03-2013 के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ... सादर!
लिंक है-
http://charchamanch.blogspot.in/2013/03/1183.html
आपका लेख हमनें वेबसाईट पर डाला है, यदी आपको आपत्ती है तो कृपया हमें अवश्य बताएं, हम उसे हटा देंगे..
ReplyDeleteसादर
http://chetansamaj.com/women_related_social_science/
(आपके नाम के साथ साथ आपके इसा ब्लॉग का लिंक भी दिया गया है)
नमस्कार..
Team ChetanSamaj.com