क्या सचमुच हम महिला दिवस मनाने के योग्य है ?
जी हाँ ये सोचने का विषय है कि क्या सही मायनों मे हमे महिला दिवस मनाना चाहिए या महिला दिवस पर दो चार भाषण दे कर केवल कर्त्तयों की इति श्री कर लेना मात्र ही महिला दिवस नहीं होता । सच मे देखा जाए तो ये सारी परम्पराएँ विदेशों से आईं है और यहाँ हमारे भारत मे जहां नारी को देवी का दर्जा दिया जाता था यहाँ भी बस महिला दिवस मना कर इति श्री कर ली जाने लगी है । पर यदि हम महिलाओं से पूछे कि आज जो महिला दिवस मनाया जा रहा है उससे महिलाओं को क्या फायदा हुआ है क्या उनको सम्मानित नजरों से देखा जाने लगा है क्या उन जगहों पर जहाँ महिलाओं कि कोई इज्जत ही नहीं होती वहाँ उनकी स्थितयो मे कोई सुधार हुआ है , क्या देश की हर महिला को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जा सका है या शिक्षित किया जा सका है । क्या समाज मे महिलाओं को उनका दर्जा मिल पाया है ? उत्तर शायद न मे होगा ।
पिछले कई दिन पूर्व एक अखबार मे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जी का एक लेख पढ़ा उन्होने लिखा था - " नारी को देवी नहीं बस नारी ही माने । " कितना सही और सटीक लिखा है । नारी शायद देवी नहीं बनना चाहती बस उसे नारी ही मान कर उसकी इज्जत और सम्मान बनाए रखें । उसकी भावनाओं का सम्मान करें । ये तब हो पाएगा जब नारी खुद ही खुद का सम्मान करना सीखेगी । आज तक नारी ने खुद का सम्मान करना ही नही सीखा , खुद से तात्पर्य है की नारी अपनी एवं अपनी जाति का सम्मान स्वयं नहीं करेगी तब तक उसे दुनिया मे सम्मान कहाँ से मिलेगा । सम्मान कोई लड्डू नहीं कि उठा के किसी को भी खिला दिया जाए और सम्मान मांगने से मिलता भी नहीं , नारी चाहे तो क्या नहीं कर सकती । नारी को स्वयं को इस काबिल बनाना ही होगा कि लोग कहने के लिए मजबूर हो जाए कि वाह !!!!
ऐसी तमाम नारियां हुई है जो हम सबकी प्रेरणा श्रोत्र है और उनका आज भी सम्मान होता है , निरीह और दुरूह बने रहने से सम्मान नहीं मिलता । और यदि मिलता भी है तो वह भीख जैसा होता है ।
पता नहीं कितना कुछ कहने को है परंतु शायद मेरे पास शब्द कम हैं या मै अभी इतनी काबिल नहीं कि कोई ज्वाला प्रज्ज्वलित कर पाऊँ । सही मायनों मे महिला दिवस तभी होगा जब नारियां स्वयम एकदूसरे का संमान करना सीखे लेंगी । आज जिधर भी देखती हूँ स्त्री को ही स्त्री का दुश्मन पाती हूँ । पुरुषों से क्या शिकायत करें ?
वो लाइने याद आतीं हैं -" गैरों से शिकायत क्या करते जब अपनों ने हमे समझा ही नहीं ।"
जी हाँ ये सोचने का विषय है कि क्या सही मायनों मे हमे महिला दिवस मनाना चाहिए या महिला दिवस पर दो चार भाषण दे कर केवल कर्त्तयों की इति श्री कर लेना मात्र ही महिला दिवस नहीं होता । सच मे देखा जाए तो ये सारी परम्पराएँ विदेशों से आईं है और यहाँ हमारे भारत मे जहां नारी को देवी का दर्जा दिया जाता था यहाँ भी बस महिला दिवस मना कर इति श्री कर ली जाने लगी है । पर यदि हम महिलाओं से पूछे कि आज जो महिला दिवस मनाया जा रहा है उससे महिलाओं को क्या फायदा हुआ है क्या उनको सम्मानित नजरों से देखा जाने लगा है क्या उन जगहों पर जहाँ महिलाओं कि कोई इज्जत ही नहीं होती वहाँ उनकी स्थितयो मे कोई सुधार हुआ है , क्या देश की हर महिला को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जा सका है या शिक्षित किया जा सका है । क्या समाज मे महिलाओं को उनका दर्जा मिल पाया है ? उत्तर शायद न मे होगा ।
पिछले कई दिन पूर्व एक अखबार मे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जी का एक लेख पढ़ा उन्होने लिखा था - " नारी को देवी नहीं बस नारी ही माने । " कितना सही और सटीक लिखा है । नारी शायद देवी नहीं बनना चाहती बस उसे नारी ही मान कर उसकी इज्जत और सम्मान बनाए रखें । उसकी भावनाओं का सम्मान करें । ये तब हो पाएगा जब नारी खुद ही खुद का सम्मान करना सीखेगी । आज तक नारी ने खुद का सम्मान करना ही नही सीखा , खुद से तात्पर्य है की नारी अपनी एवं अपनी जाति का सम्मान स्वयं नहीं करेगी तब तक उसे दुनिया मे सम्मान कहाँ से मिलेगा । सम्मान कोई लड्डू नहीं कि उठा के किसी को भी खिला दिया जाए और सम्मान मांगने से मिलता भी नहीं , नारी चाहे तो क्या नहीं कर सकती । नारी को स्वयं को इस काबिल बनाना ही होगा कि लोग कहने के लिए मजबूर हो जाए कि वाह !!!!
ऐसी तमाम नारियां हुई है जो हम सबकी प्रेरणा श्रोत्र है और उनका आज भी सम्मान होता है , निरीह और दुरूह बने रहने से सम्मान नहीं मिलता । और यदि मिलता भी है तो वह भीख जैसा होता है ।
पता नहीं कितना कुछ कहने को है परंतु शायद मेरे पास शब्द कम हैं या मै अभी इतनी काबिल नहीं कि कोई ज्वाला प्रज्ज्वलित कर पाऊँ । सही मायनों मे महिला दिवस तभी होगा जब नारियां स्वयम एकदूसरे का संमान करना सीखे लेंगी । आज जिधर भी देखती हूँ स्त्री को ही स्त्री का दुश्मन पाती हूँ । पुरुषों से क्या शिकायत करें ?
वो लाइने याद आतीं हैं -" गैरों से शिकायत क्या करते जब अपनों ने हमे समझा ही नहीं ।"
विचारणीय ......
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
दिवस मनाने का कोई तुक नहीं ....... अपने घर का एहसास जी सकें, यही बहुत है
ReplyDeleteji rashmi ji sahi kaha apne .
DeleteNice Post, Congratulations.
ReplyDeleteKisi ne kaha hai ki har safal aadmi ki safalta ke peechhe ek naari ka haath hota hai.
सही ही तो है दिखावा करने से भला क्या लाभ ...
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