Monday, 25 February 2013

मुसाफिर जागते रहना

अरे ओ मुसाफिर !
जागते रहना यहाँ पर चोर आते है ,
खुद ही संभाले रहना गठरी को ,
धोखा न कहीं खा जाना ,
जरा झपकी के लगते ही ,
झपट कर गठरी उठाते हैं ।

कपट व्यवहार होता यहाँ ,
बिछा है जाल चौतरफा ,
दिखा कर मोहिनी मूरत ,
जाल में झट फसाते है।

ठगी का काम है जारी ,
भरोसा भूल भी नहीं करना ,
प्यार ,मुहब्बत , नेह , ममता ,
सब एक ही पलक में बिसराते है।

ये दुनिया चार दिनों की ,
चाँदनी चंहु ओर फैली ,
व्यर्थ ही नैना क्यों ,
इत उत भरमाते हैं ।

अरे ओ मुसाफिर !!!!!

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