इतना दुलराओ बालक को , हो अनुशासन हीन नहीं ,
इतना प्यार करो , हो जिससे , निष्क्रिय कर्म विहीन नहीं ,
इतना सुख दो , जितने से कर सके बुद्धि का वह विस्तार ,
हो न कभी मति मंद आलसी , उपजे शुद्ध विवेक विचार ।
इतना मुक्त करो , जितने से , स्वतन्त्रता का अनुभव हो ,
इतनी दो न मुक्ति , जिससे उच्छङ्खृलता का उद्भव हो ,
इतना प्रेम दिखाओ , जितने से अपना सम्मान रहे ,
इतनी करो ताड़ना , जिससे उसमे हठ न गुमान रहे ।
वह डालो संस्कार कि , वह शुभ सद्ज्ञानी संस्कारी हो ,
विवेकी , यशस्वी , वाग्मी , वीर , धीर और बलिदानी हो ।
माता पिता का आज्ञाकारी ,
गुरु और वृद्ध जनो का मान करने वाला हो ।
ऐसी दो प्रेरणा कि जिसे नित बढ्ने का ही क्रम हो ।
ऐसा दो विश्वास कि प्राणों मे दृढ़ता हो , संयम हो ,
चाहे जिधर मोड लो कोमल सलिल धार सा बालक मन ,
जनक और जननी पर निर्भर बालक का उत्थान पतन ।
इतना प्यार करो , हो जिससे , निष्क्रिय कर्म विहीन नहीं ,
इतना सुख दो , जितने से कर सके बुद्धि का वह विस्तार ,
हो न कभी मति मंद आलसी , उपजे शुद्ध विवेक विचार ।
इतना मुक्त करो , जितने से , स्वतन्त्रता का अनुभव हो ,
इतनी दो न मुक्ति , जिससे उच्छङ्खृलता का उद्भव हो ,
इतना प्रेम दिखाओ , जितने से अपना सम्मान रहे ,
इतनी करो ताड़ना , जिससे उसमे हठ न गुमान रहे ।
वह डालो संस्कार कि , वह शुभ सद्ज्ञानी संस्कारी हो ,
विवेकी , यशस्वी , वाग्मी , वीर , धीर और बलिदानी हो ।
माता पिता का आज्ञाकारी ,
गुरु और वृद्ध जनो का मान करने वाला हो ।
ऐसी दो प्रेरणा कि जिसे नित बढ्ने का ही क्रम हो ।
ऐसा दो विश्वास कि प्राणों मे दृढ़ता हो , संयम हो ,
चाहे जिधर मोड लो कोमल सलिल धार सा बालक मन ,
जनक और जननी पर निर्भर बालक का उत्थान पतन ।
nice post.
ReplyDeleteVery nice
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