Thursday, 21 February 2013

एक अभिलाषा

फूँक से उड़े धुआँ ते अंगार हुई ,
अंगार से बनी ज्वाला ले लपट संहार हुई ,
नहीं दामिनी , अभया , निर्भया न अनामिका ,
जिसके  लिए माँ ने किया करुण क्रंदन
पिता का दिल रोया
बहन ने की करूण पुकार ,
भाई ने किया नाम आँखों से विदा ,
बहन आना तुम लौट कर आना ,
फिर आना बार बार आना , लेकिन
इस बार ऐसे नहीं , कुछ इस तरह ,
कि दिल दहल उठें दुश्मन के ।
बन के दुर्गा , कालिका , चन्डी ,
दुष्टो  की खातिर लपलपाती ज्वाला ,
अपनों की खातिर सौम्य रूप निराला ।
कोई दुष्ट अब न छूटे ,
चिंगारी कुछ ऐसी  फूटे ,
कोई दामिनी अब न लुटे ,
कि रहे न धरा पर ,
कोई अस्मिता का लुटेरा ,
कोई जीवन का लुटेरा ,
तुम्हें आना होगा , बार बार , सहसत्रों बार ।

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