कुछ दिन पूर्व एक बाबा जी के सत्संग मे जाना हुआ । उनकी बातों से मन प्रफुल्लित हो गया । उनकी कही हुई ज्ञानवर्धक बातों को आप सब के साथ बांटने में मुझे बेहद सुखानुभूति हो रही है ।
1) अच्छे व्यक्तियों के संग से व्यक्ति अनेक गुणों से युक्त होता है , जबकि दुष्ट व्यक्तियों का संग करके व्यक्ति दुराचारी और कुमार्गी बन जाता है । आदर्श माता पिता वे है जो अपनी संतान को धर्म और सत्य का मार्ग बताते है , सदाचार और सत्याचरण के संस्कार देते है । जब से हमने अपनी संतानों को धर्माचरण के संस्कार देने बंद किए है तभी से पतन शुरू हुआ है । अतः संस्कारों पर बल दिया जाना चाहिए । माताएँ , घर के बड़े बुजुर्ग तथा संत बालको एवं युवाओं को पग पग पर प्रेरणा देते रहते थे और संस्कार देने के लिए प्रेरित करते थे ,जो बच्चों एवं युवाओं पर हमेशा प्रभाव डालते थे । किन्तु कुछ आधुनिक माताओं ने ही संस्कार त्याग दिये , बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना छोड़ दिया बड़े ,बुजुर्ग उन्हे अपनी राह का रोड़ा नजर आने लगे तो संतान पीछे कैसे हो सकती है , कहा भी जाता है कि बच्चों की प्रथम पाठशाला घर से ही आरंभ होती है । जैसा घर मे बच्चे अपने बड़ों को करते हुए देखेंगे वही करेंगे ये निश्चित है ।
बड़े स्वयं ही पक्षपात करते हुए दिखाई देते है पता लगा किसी को वे स्वयं ही नहीं पसंद करते हैं तो ऐसे मे बच्चों को भी मजबूर कर दिया जाता है कि वे उस व्यक्ति का सम्मान न करें जिसका वे खुद ही नहीं करते । ऐसे अभिभावक बच्चों को क्या शिक्षा दे पाएंगे ? जो स्वयम भटका हुआ है वह कैसे सही राह दिखा पाएगा ? सही राह दिखाने के लिए खुद को पहले सही राह पर ले चलना होगा ।
सत्संग का ये मतलब बिलकुल नहीं है कि आप रोज अपने घर की जिम्मेदारियों को छोड़ कर किसी बाबा की शरण मे जाकर बैठे रहें , घर बिगड़ता है तो बिगड़ जाए , बाबा जी के सत्संग मे जाना जरूरी है । आप घर मे रह कर स्वयम सच्चाई और सदाचार के मार्ग पर चल कर बच्चों को सही मार्ग दर्शन दे कर बड़ो बुजुर्गों का सम्मान कर और अपने बच्चों से करवा कर सत्संग का माहौल घर मे ही बना सकते है , सच्चा सत्संग वहीं है ।
2) दुर्व्यसनी के कुछ पल के संग से हमारे संचित संस्कार तक लुप्त हो जाते है । वह बड़ी आसानी से अपने मार्ग पर चलने के लिए व्यक्तियों को आकर्षित करने मे सफल रहता है । वह हमेशा ही ये सोचता है कि जो वो कर रहा है वो गलत है तो सामने वाला उससे अछूता क्यों रहे ,उसे भी हमारी श्रेणी मे ही रहना चाहिए ताकि उसका दायरा बढ़ता रहे । याद रखने वाली बात ये है कि जो जैसा होगा वैसे ही सबक अन्य व्यक्तियों को देगा । उसकी मानसिकता ही हमेशा इस प्रकार सोचने को प्रेरित करती रहती है ।
इसलिए स्वम का विवेक जाग्रत करने की आवश्यकता है , ताकि सही और गलत का निर्णय लिया जा सके । तभी सत्संग की प्राप्ति संभव है ।
हमारा भारत देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है और विलुप्त हो रही संस्कृतियों को सँजो कर रखना हमारी ज़िम्मेदारी है यदि एक भी व्यक्ति उठ खड़ा होगा तो भी जागृति मे देर नहीं ।
याद रखिए संत अर्थात महान व्यक्ति का संग केवल उन्हे प्राप्त हो पाता है जो वाणी तथा मन से सत्कार्यों मे लगा रहता है । अपने कर्तव्यों का भली भांति निर्वाह करता है जिसका मन भटकता नहीं जो एकाग्र चित्त होकर अपने आराध्य को ही भजता है जो सबको समान रूप से देखता है ऐसा व्यक्ति ही उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर पाता है कोई बाबा या ढोंगी साधू नहीं ।
"ये समय जागरण का है उठिए और जागिए कहीं बहुत देर न हो जाए । "
1) अच्छे व्यक्तियों के संग से व्यक्ति अनेक गुणों से युक्त होता है , जबकि दुष्ट व्यक्तियों का संग करके व्यक्ति दुराचारी और कुमार्गी बन जाता है । आदर्श माता पिता वे है जो अपनी संतान को धर्म और सत्य का मार्ग बताते है , सदाचार और सत्याचरण के संस्कार देते है । जब से हमने अपनी संतानों को धर्माचरण के संस्कार देने बंद किए है तभी से पतन शुरू हुआ है । अतः संस्कारों पर बल दिया जाना चाहिए । माताएँ , घर के बड़े बुजुर्ग तथा संत बालको एवं युवाओं को पग पग पर प्रेरणा देते रहते थे और संस्कार देने के लिए प्रेरित करते थे ,जो बच्चों एवं युवाओं पर हमेशा प्रभाव डालते थे । किन्तु कुछ आधुनिक माताओं ने ही संस्कार त्याग दिये , बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना छोड़ दिया बड़े ,बुजुर्ग उन्हे अपनी राह का रोड़ा नजर आने लगे तो संतान पीछे कैसे हो सकती है , कहा भी जाता है कि बच्चों की प्रथम पाठशाला घर से ही आरंभ होती है । जैसा घर मे बच्चे अपने बड़ों को करते हुए देखेंगे वही करेंगे ये निश्चित है ।
बड़े स्वयं ही पक्षपात करते हुए दिखाई देते है पता लगा किसी को वे स्वयं ही नहीं पसंद करते हैं तो ऐसे मे बच्चों को भी मजबूर कर दिया जाता है कि वे उस व्यक्ति का सम्मान न करें जिसका वे खुद ही नहीं करते । ऐसे अभिभावक बच्चों को क्या शिक्षा दे पाएंगे ? जो स्वयम भटका हुआ है वह कैसे सही राह दिखा पाएगा ? सही राह दिखाने के लिए खुद को पहले सही राह पर ले चलना होगा ।
सत्संग का ये मतलब बिलकुल नहीं है कि आप रोज अपने घर की जिम्मेदारियों को छोड़ कर किसी बाबा की शरण मे जाकर बैठे रहें , घर बिगड़ता है तो बिगड़ जाए , बाबा जी के सत्संग मे जाना जरूरी है । आप घर मे रह कर स्वयम सच्चाई और सदाचार के मार्ग पर चल कर बच्चों को सही मार्ग दर्शन दे कर बड़ो बुजुर्गों का सम्मान कर और अपने बच्चों से करवा कर सत्संग का माहौल घर मे ही बना सकते है , सच्चा सत्संग वहीं है ।
2) दुर्व्यसनी के कुछ पल के संग से हमारे संचित संस्कार तक लुप्त हो जाते है । वह बड़ी आसानी से अपने मार्ग पर चलने के लिए व्यक्तियों को आकर्षित करने मे सफल रहता है । वह हमेशा ही ये सोचता है कि जो वो कर रहा है वो गलत है तो सामने वाला उससे अछूता क्यों रहे ,उसे भी हमारी श्रेणी मे ही रहना चाहिए ताकि उसका दायरा बढ़ता रहे । याद रखने वाली बात ये है कि जो जैसा होगा वैसे ही सबक अन्य व्यक्तियों को देगा । उसकी मानसिकता ही हमेशा इस प्रकार सोचने को प्रेरित करती रहती है ।
इसलिए स्वम का विवेक जाग्रत करने की आवश्यकता है , ताकि सही और गलत का निर्णय लिया जा सके । तभी सत्संग की प्राप्ति संभव है ।
हमारा भारत देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है और विलुप्त हो रही संस्कृतियों को सँजो कर रखना हमारी ज़िम्मेदारी है यदि एक भी व्यक्ति उठ खड़ा होगा तो भी जागृति मे देर नहीं ।
याद रखिए संत अर्थात महान व्यक्ति का संग केवल उन्हे प्राप्त हो पाता है जो वाणी तथा मन से सत्कार्यों मे लगा रहता है । अपने कर्तव्यों का भली भांति निर्वाह करता है जिसका मन भटकता नहीं जो एकाग्र चित्त होकर अपने आराध्य को ही भजता है जो सबको समान रूप से देखता है ऐसा व्यक्ति ही उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर पाता है कोई बाबा या ढोंगी साधू नहीं ।
"ये समय जागरण का है उठिए और जागिए कहीं बहुत देर न हो जाए । "
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