Sunday 30 December 2012

सामाजिक संवेदनहीनता




काफी समय से एक चर्चा चल रही थी - समाज मे महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं !
 मैंने भी कई लोगो के विचार सुने व अखबारों मे बड़े बड़े व्याख्यान देखे , परंतु  निष्कर्ष कुछ नहीं निकला । बडी बड़ी बातें करने वाले नेता  गण सिर्फ बातों के ही धुरंधर है । यदि कोई समाधान वे निकालना चाहें और न निकाल पायेँ ऐसा संभव ही नहीं है । हर रोज किसी न किसी के साथ अन्याय होता है और अन्यायी हमेशा की तरह बच जाता है । बड़े बड़े नेता हमेशा यही कहते पाये जाते हैं कि न्याय होगा , दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा , हम कठोर से कठोर कारवाई करेंगे , इत्यादि इत्यादि । न कभी कारवाई होती है न कोई सजा ही होती है । यदि सरकार इस ओर कठोर कदम उठाए और दोशियों को कठोर सजा दी जाए तो ऐसा कर्म करने वालों और ऐसा सोचने वालों मे एक संदेश जाएगा कि हमने अगर किसी भी लड़की के साथ कोई भी गलत काम किया तो कानून हमे बख्शेगा नहीं ।   यहाँ कानून और व्यवस्था दोनों को साथ होना जरूरी है  परंतु हम ये किस सरकार से ये उम्मीद लगा बैठें हैं जो देश को ही डुबोए दे रही है वह क्या किसी व्यवस्था साथ देगी  तथा किसी  स्त्री  की सुरक्षा का वचन देगी । ये तो रही सरकार की बात ।

अक्सर हम देखते है कि कभी किसी को मुसीबत मे देखने के बाद भी कोई मदद को आगे नही आता , उसका कारण है हमारा समाज । वो समाज ,  जिसको जन्म देने वाली एक स्त्री है । यदि स्त्री जन्म देने से मना कर दे तो   कहाँ समाज और कैसा समाज  ? स्त्री और पुरुष दोनों ही इस समाज की संरचना करते है फिर स्त्री को ही दोयम दर्जा क्यों ? जब  कि  कष्ट उठाकर जन्म दे स्त्री ,और अपमान भी उसी का , क्यों ? क्यों किसी स्त्री के ही वस्त्र फाड़े जाते हैं ? क्यों किसी का बोलना अहंकारी पुरुषों से सहन नहीं होता ? क्यों भूल जाते हो कि जिसने तुम्हें जन्म दिया वो भी एक स्त्री ही है । क्यों भूल जाते हो कि जो तुम्हारी कलाई पर राखी बांधती है वह भी एक स्त्री है । क्यों भूल जाते हो कि स्त्री हमारे देश  की मर्यादा है ।  बड़ा क्रोध आता है जब ये सुनती हूँ कि फलां व्यक्ति ने फलां स्त्री कि मर्यादा को छलनी किया । काश ! उसी समय ऐसा हो  ,  जिस समय कोई बंदा किसी लड़की की  मर्यादा को छलनी कर रहा हो उसकी अपनी बहन  ,माँ , पत्नी या बेटी उसी जुल्म का शिकार हो रही हो तो ही शायद उस बंदे को अपने द्वारा किए गए घृणित  कार्य का अहसास होगा । या शायद नहीं । क्योंकि उसकी आत्मा  मर चुकी होती है , जमीर मर चुका होता है तभी शायद एहसास भी मर चुके होते है । तभी किसी को भी कष्ट  पहुचाने मे कोई ग्लानि भी नहीं होती ।

मैंने अक्सर कई  घरों मे भी देखा है कि बेटियो के साथ बड़ा अजीब व्यवहार किया जाता है जो कि उनके कोमल मन को आहत करने के लिए काफी है । कहाँ तक व्याख्या की जाए - माँ स्वयं बेटी और बेटे का फर्क करती है तभी ऐसे बेटे स्त्री की इज्जत करना नहीं जानते । या यों कहे कि स्त्री ही स्त्री की शत्रु है तो अतिशयोक्ति न होगी । स्त्री अपनी संवेदनहीनता की शिकार खुद ही है । यदि एक स्त्री ही स्त्री का सम्मान करेगी तो पुरुषों की मजाल नहीं है कि वे उनका अपमान कर भी पाएँ ।

यहाँ मै सिर्फ महिलाओं और लड़कियों  को एक बात कहना चहुंगी कि अपनी जंग खुद लड़ो , अपना सम्मान छीन कर लो क्योंकि आज मांगने से कुछ भी नही मिलता है । आज तुम्हें इतना मजबूत बनना होगा कि कोई तुम पर हमला न कर पाये । बिना वजह उलझो नहीं , बेमतलब सहो नहीं ।  जो इज्जत पर हमला करे उसे इस लायक मत छोड़ो कि वह किसी लायक रह जाए । नारी की सुरक्षा का वचन कोई नहीं दे सकता  । नारी  को खुद ही मानसिक और शारीरिक तौर पर  इस काबिल बनना ही होगा कि वो अपनी सुरक्षा स्वयं कर पाएँ । मत मांगो किसी से  सहायता । अपनी सहायक आप बनो । नारी की शक्ति के आगे कोई भी नही टिक सकता । याद रखो :- झाँसी की रानी भी एक नारी थीं जिनके पराक्रम के आगे अंग्रेजों ने भी घुटने टेक दिये थे ।

जिस   माँ दुर्गा की हम सब पूजा करते है वह भी नारी शक्ति ही है जिन्होंने असुरों को जड़ से उखाड़ फेंका था । याद रखो  कि  हम भी उनही माँ दुर्गा का अंश है ।

कभी अपनी दादी नानी व माँ से  सुना करते थे कि - न जाने कि भेस मे मिल जाए भगवान , लेकिन आज के दौर मे ये कहावत सही लगती है कि - न जाने किस भेस मे मिल जाए शैतान ।








 

2 comments:

  1. बिलकुल सच बात लिखी है आपने अंतइम पंक्तियों में अब तो यही आलम है कि नजाने कब किस भेस में मिल जाये शैतान... सशक्त लेखन...

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  2. thanks for your comment . you can also like my next article " swatantrata aur nari " .

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