आज से पैंसठ वर्ष पूर्व जब भारत आजाद हुआ था तब हम सबने
यही सोचा था कि चलो अब हम सब अपनी इच्छा से जीवन जीने
के लिए आजाद है, अब हम किसी के मोहताज नहीं है , किसी के
गुलाम नहीं है , कोई हमारी भावनाओं को चोट पहुचाने वाला नहीं
है । हम अब खुली हवा मे सांस ले पाएंगे ।
पर क्या सच मे हम आजाद हो पाये हैं । यदि समाज का हर व्यक्ति अपने अन्तर्मन मे झांक कर देखे तो पाएगा कि नहीं , आज भी हम आजाद नहीं हुए हैं ।
देश की आजादी के लिए कितनी जंग लड़ी गई , कितने ही वीर शहीद हो गए , कितने नाम तो हमे पता ही नहीं है , इस सबके एवज मे हम आजाद तो हो गए परंतु अपनी आजादी को हम खुद ही सहेज कर नहीं रख पाए । आज कहने भर को तो हम आजाद है लेकिन यथार्थ कुछ और ही है । पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे ,आज हम अपने देश के नेताओं के गुलाम हैं , वे जैसे चाहते है हमारे देश की जनता का इस्तेमाल करते है , हमारी भारत माता तब भी बेड़ियो मे जकड़ी थी और आज भी जकड़ी हुई है । आखिर क्यों ? क्या वजह रही ? क्यों नहीं बचा पाये हम अपनी भारत माता को ?
भारत माता तब भी आँसू बहाती थी और आज भी आँसू बहाती है फर्क इतना है कि तब उसे सताने वाले उसके अपने बेटे नहीं थे , आज उसे सताने वाले उसके अपने ही बेटे है । और आज उसके अपने बेटों ने तो परायों से ज्यादा उसे दुःखी किया है , उसकी आत्मा को छलनी किया है , उसकी अस्मिता को तार तार किया है । ऐसा पहले तो नहीं था जब वह कष्ट मे थी तो उसके बेटों ने उसका दर्द महसूस किया , उसके आँसू पोछने की कसम ली । उसकी अस्मिता बचाने की खातिर वे खुद होम हो गए पर उफ भी न निकाली । देश के सपूतों ने उसे वचन दिया था कि - हे माँ ! हम तुम्हें स्वतंत्र करा कर तुम्हारा आँचल हरा भरा रखेंगे , तुम्हें खुशहाल जीवन देंगे । पर ऐसा हो न सका । वे , जिन लोगों ने वचन दिया था वे लाल एक एक कर चले गए । हमारी माता फिर अकेली आँसू बहाने लगी है , क्योंकि जिन के हांथों मे वे बागडोर सौंप गए थे वे खुद ही उसके अंचल को नोंचने खसोटने लगे । आज किसके आगे फरियाद करे वह माता ? कौन सुनेगा उसकी वेदना भरी आवाज ? आज उन सभी वचनों की धज्जियां ही उड़ गई है ।
स्त्री , जो कभी माँ , बहन , पत्नी , बहू , बेटी ,सास ,दादी माँ , नानी माँ इत्यादि रूपों मे हमारे लिए अपनी सेवाएँ प्रदान करती है , जिसकी सेवाओं व शिक्षा से हम सभी लाभान्वित होकर संस्कारवान बनते हैं । हर रूप मे स्त्री ने दिया ही है बदले मे कुछ ज्यादा नहीं मांगा , सिर्फ सम्मान मांगा , कि वह भी जिसने समाज की संरचना की अपनी इच्छानुसार जीवन जी पाये । स्वतंत्र रूप से अधिकारों का प्रयोग कर पाये । उस दुनिया का रसास्वादन कर पाये जिसकी संरचना उसने स्वयं की है । जिनको प्रेम, स्नेह और सम्मान देती आई है उनसे किंचित मात्र ही प्रेम स्नेह और सम्मान मिले ।
परंतु ऐसा होता नहीं है । नारी को कमजोर समझने वाले शायद ये भूल जाते है कि जो नारी जन्म दात्री है वह कमजोर नहीं है , जो धारिणी है वह कमजोर नहीं है , जो सृजनकर्त्ता है वह कमजोर नहीं है । बस वह सबका सम्मान करती है और उसकी इसी बात का फायदा सारा समाज उठाता आया है , चुप रहने वाली नारी कमजोर नहीं होती ,केवल इस लिए चुप रहती है कि शालीनता बनी रहे , बच्चे संस्कारवान बने , घर का माहौल खराब न हो । चुप इसलिए रहती है कि उसे माँ ने यही सिखाया है ,माँ इसलिए चुप रहती थी कि उसे उसकी माँ ने सिखाया था , पीढ़ियों दर पीढ़ियों यही चलता आया है । नारी को यही सिखाया गया कि पुरुष ही हमारा संरक्षक है उसके बिना तू अधूरी है । हर रूप मे पुरुष महान है ऐसी शिक्षा माँ ने सिखायी । वह खुद कहाँ महान है ये नहीं सिखाया । यदि ये भी सीखा होता तो नारी कम से कम खुद की इज्जत करना तो समझ ही जाती । दुनिया मे हर किसी को अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने का हक है और ये हक कोई किसी से नहीं छीन सकता । क्यों पुरुष नारी की कद्र करना नहीं जानता , शायद माँ ने नहीं सिखाया । क्यों सिखाती ? वह खुद ही नहीं जानती कि पुरुषों को नारी की कद्र करना आना चाहिए । उसने खुद ही यही जाना और समझा कि मुझे पुरुष के अधीन ही रहना है । पुरुष संरक्षक की भूमिका निभाता है ये सही है , नारी को उसके संरक्षण से मजबूती मिलती है ये भी सही है किन्तु पुरुष का अधीन बन कर रहना सही नहीं है । अधीनता हमेशा ही गलत होती है , अधीनता कहीं न कहीं व्यक्ति को विद्रोह करने के लिए उकसाती है । जहां नारी को अपने अधीन रखने से पुरुषों मे अहंकार आता है वहीं नारी के अंदर भी कुंठा का जन्म होता है । और वह उसी कभी न मिटने वाली कुंठा के वशीभूत हमेशा ही रहती है ।
ऐसी अवस्था में पुरुष उसके खोये हुये विश्वास को दुबारा लौटा कर लाने मे एक अच्छे सहायक की भूमिका निभा सकता है क्योंकि वह उसका संरक्षक है , चाहे वह पिता , पति , पुत्र , दोस्त कोई भी हो सकता है । यहाँ एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि इन रिश्तों के धारक अपने रिश्ते कि गरिमा को समझते हुए उसकी गरिमा बनाए रखें । नारी को थोड़ा भी प्यार और विश्वास मिलता है तो पूरी तन्मयता से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती है । नारी देवी नहीं है , न ही बनना चाहती है । वह तो बस इतना चाहती है कि उसे बराबर का दर्जा मिले । वह पुरुषों की बराबरी नहीं करना चाहती पर समानता का अधिकार चाहती है । ताकि वह एक स्वस्थ , सभ्य और सुसंस्कृत समाज की संरचना कर सके ।
याद रखिए कामयाबी वहाँ होती है जहाँ प्यार और एकता होती है । इसलिए हे महान पुरुषों नारी का स्वाभिमान बनाए रखने मे उसकी मदद करिये ताकि आपके घर की कामयाबी आपके कदम चूमे ।
याद रखिए बदलाव एक दिन मे ही नहीं होता और बद्लाव की शुरुआत हमे अपने आप से ही करनी होगी । दूसरों को दोष देने से कुछ नहीं होगा । सरकारें क्या करती है क्या नहीं करती इससे कोई फायदा नहीं । बदलना है तो खुद को बदलिये , ऐसे ही एक एक कर सभी बदल जाएंगे ।
याद रखिए जो नारी समाज की संरचना करती है उसका पालन करती है वह संहार भी कर सकती है ।
याद रखिए जब स्त्री पर किया जाने वाला अत्याचार हद से ज्यादा बढ़ जाता है तब माँ दुर्गा किसी न किसी रूप मे प्रकट होती है और आतताइयों का संहार करती है ।
आज का समय चीख कर कह रहा है कि ये समय नारी के जागरण का है , उसे जागना ही होगा , अपनी कुंठा से बाहर आना ही होगा ताकि सभ्य समाज की संरचना हो सके । नारी गरिमामयी है उसका अपना स्वाभिमान है , नारी ही देश का गौरव होती है , किसी घर की इज्जत होती है । नारी को सर्व प्रथम स्वयं की इज्जत करना सीखना होगा तभी वह अपना खोया सम्मान वापस पा सकेगी ।
यत्र नार्यस्तु पूजयते , रमन्ते तत्र देवता ॥
अर्थात :- जहां नारी का सम्मान होता है वहाँ देवता स्वयं निवास करते है ।
हम सतयुग पुनः ला सकते है इसके लिए नारी को खुद नारी का
सम्मान करना होगा । तब दूसरे नारी का सम्मान करेंगे । तभी
सही मायनों मे नारी की स्वतन्त्रता होगी ।
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