महा कवि रहीम दास जी ने कहा है -
जे रहीम उत्तम प्रकृति , का करि सकत कुसंग ।
चन्दन विष व्यापत नहीं , लिपटे रहत भुजंग ॥
- अर्थात :- जो उत्तम प्रकृति के लोग होते उन पर बुरी संगत का कोई असर नहीं होता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चन्दन के वृक्ष पर हजारों सर्पों जो उस पर लिपटे रहते है , कोई असर नहीं होता है या वह अपनी शीतलता नहीं छोडता ।
संस्कारों से युक्त व्यक्तियों पर बुरी संगत का असर नहीं होता है । हर एक को अपने अपने घर मे शुद्ध संस्कार प्राप्त हुए है । जितने भी महापुरुष हुए है उन्हे अपने घरों से ही सुघड़ संस्कार मिले है। और उन्होने उनही संस्कारों के साथ अपना जीवन जिया और अमित छाप छोड़ी , आज भी उन्हे याद किया जाता है । ठीक उसी प्रकार जो बुरे हैं उनको भी सही मार्ग पर नहीं लगाया जा सकता ।
जे रहीम उत्तम प्रकृति , का करि सकत कुसंग ।
चन्दन विष व्यापत नहीं , लिपटे रहत भुजंग ॥
- अर्थात :- जो उत्तम प्रकृति के लोग होते उन पर बुरी संगत का कोई असर नहीं होता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चन्दन के वृक्ष पर हजारों सर्पों जो उस पर लिपटे रहते है , कोई असर नहीं होता है या वह अपनी शीतलता नहीं छोडता ।
संस्कारों से युक्त व्यक्तियों पर बुरी संगत का असर नहीं होता है । हर एक को अपने अपने घर मे शुद्ध संस्कार प्राप्त हुए है । जितने भी महापुरुष हुए है उन्हे अपने घरों से ही सुघड़ संस्कार मिले है। और उन्होने उनही संस्कारों के साथ अपना जीवन जिया और अमित छाप छोड़ी , आज भी उन्हे याद किया जाता है । ठीक उसी प्रकार जो बुरे हैं उनको भी सही मार्ग पर नहीं लगाया जा सकता ।
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