Wednesday, 28 November 2012

संस्मरण

 माँ तुम ही तो हो
              
                                माँ ! कितना सरल और प्यारा भाव है । एक शब्द मे  जैसे हमारी दुनिया ही बसती है । सिर्फ माँ को पुकारना ,दौड़ना ,रोना - बिलखना , मचलना बस । और उनकी गोद मे जाकर बैठ जाना ,रूठना , नखरे दिखाना , बाकी का काम हमारा नहीं माँ का । चाहे वह कैसे भी करे उसे हमे उठा कर दुलारना , पुचकारना होगा । ....
                
   एक  राजा निर्दयी हो सकता है , मित्र धोखा दे सकता है , प्रीतम मुंह मोड सकता है , पिता त्याग सकता है किन्तु माँ अपनी संतान के प्रति कभी निष्ठुर नही हो सकती है । चोर हो , जुआरी हो , व्यभिचारी हो या माँ की आज्ञा न पालन करने वाला हो , उसे कष्ट देने वाला हो , बुरे से बुरा हो परंतु माँ का स्नेह आंचल उस पर हमेशा रहता है और वो किसी काल मे कम नहीं होता है ।
                                                       
" कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति । "
माँ हमेशा संतान को खुश देखना चाहती है । वह हमेशा उसे कष्टों से बचाना चाहती है और उसे अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहती है । उसे अपनी बाहों की अगोश  मे लेने के लिए उसके बाहों के द्वार हमेशा खुले रहते है , अपने बच्चे के इंतजार मे उसकी आंखे हमेशा राह निहारती रहती है , कि कब  उसके लाड्ले उसके साथ होंगे । माँ के लिए तो उसके  सभी बच्चे एक समान होते है चाहे वह बेटा हो या बेटी ।  उसके हृदय मे उद्गार एक जैसे ही होते है । अगर ऐसा नहीं होता तो माँ बेटी के लिए इतनी बेचैन नहीं होती । उसके सुख की खातिर अपना सब कुछ देने तक को तैयार रहती है ।
    
         एक टी वी  के न्यूज चैनल  कार्यक्रम मे कई दिनो पहले मैंने देखा कि एक नब्बे वर्षीय व्रद्धा अपने ही घर के बाहर उसके समान के साथ पड़ी है ( पड़ी इसलिए कि वह स्वयं तो आ नहीं पाई थी  उसे उसके बेटे व बहू ने ही उसे समान के साथ बाहर फेंक दिया था ) सारा मोहल्ला भी सिर्फ हमदर्दी दिखा कर चला जा रहा था । वह कुछ कुछ बड़बड़ा रही थी उसकी भाषा कोई नहीं समझ  पा  रहा था यहाँ तक कि मै खुद भी नहीं समझ पायी कि वो क्या कहना चाहती है  टीवी रिपोर्टर्स के द्वारा ये पूछे जाने पर की क्या वह अपने बेटे और बहू के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज करना चाहती है या कोई कानूनी कारवाई करना चाहती है तो वह सिर्फ इतना ही बोली कि - " नहीं  कोई शिकायत नहीं दर्ज करना चाहती इतनी ज़िंदगी तो कट ही गई है थोड़ी बाकी है कही भी काट लूँगी लेकिन यही रहूँगी । मेरा बेटा तो मेरे सामने रहेगा , मै जी लूँगी " और    केवल एक वाक्य बार बार बोल रही थी कि " पता नहीं अब मेरा लाल अकेला कैसे रहेगा ? "
       ये न्यूज देख कर मन भर आया । कि क्या बच्चे ऐसे भी होते है ,  शायद होते ही होंगे अन्यथा ये वृद्धा आश्रम नहीं होते । अक्सर ऐसा होता है कि जो चीज जब हमारे पास होती है हम शायद तब उसकी कद्र नहीं करते और जब वही हमसे दूर होती है या छिन जाती है तब उसकी हर छोटी छोटी सी बात कही न कही हमारे अंतस को झकझोरती रहती  है  काश ! पहल करने मे देरी न की होती । माता पिता हमारे जीवन की नींव है , वे उस वृक्ष की तरह होते है जो अपने छाया मे कोई कीमत नहीं जोड़ते , सिर्फ छाया देते है ।
    वे स्मृतियाँ आज भी मेरे मानस पटल पर ताजा है । जब मैने अपनी माताजी को अंतिम सांस लेते हुए देखा था इससे पहले शायद कभी इतने करीब से ऐसा नहीं देखा था। उनका मन ज़ोर - ज़ोर से चीख कर सभी को बुला रहा था पर आवाज थी कि गले से बाहर नहीं निकल रही थी , वे सब को जी भर के देख लेना चाहती  थी मानों कह रही हों सब लोग खुश रहना और जीवन मे खूब तरक्की करना ।   और वे चली गई थी सदा के लिए । खुशनसीब है वे जिनके माता पिता उनके साथ है । ये जीवन उन्ही का दिया हुआ  है उनके लिए देना पड़े तो सोचना कैसा ?

 उनकी आवाज ,उनकी स्मृतियाँ मुझे आज भी कहीं न कहीं प्यार से दुलारती है ,  मेरे कमजोर पड़ रहे मनोबल को मजबूती प्रदान करती है ।

No comments:

Post a Comment