Thursday, 22 November 2012

बानी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय

जो काम कोई नही कर सकता वो काम  उसकी भाषा शैली कर देती है , जो घाव कोई शस्त्र   नहीं दे सकता  वो घाव एक मनुष्य के बातचीत का तरीका  दे देता है । व्यक्ति के संस्कार उसकी भाषा शैली पता चल जाते है , संस्कार वान व्यक्तियों की भाषा शैली अलग ही होती है वे भरी भीड़ मे अलग ही अपनी पहचान छोडते है ,   और संस्कार हीन व्यक्तियों की भाषा शैली उदण्डता और अहंकार से परिपूर्ण होती है और हर तरफ वो अपनी उदण्डता का प्रमाण छोड जाते है । सुंदर भाषा शैली से प्रस्तुत किए जाने पर  कई बिगड़ते काम बन जाते है , असभ्यता  और उदण्डता से प्रस्तुत किए जाने पर  कई बनते काम बिगड़ जाते है । सरल और
 सुमधुर भाषा किस तरह लोगों पर अपना असर छोड़ती है :
  
    कोयल कासे लेत है , कागा काको देय ।
    एक मीठी बोली ते , सबका मन हर लेय ॥

 एक माँ के मधूर शब्द उस के बच्चे के लिए जीवन औषधि का काम करते है , उसे आगे  बढ़ने के  लिए प्रेरणा देते है , उसके कठिन क्षणो मे मरहम का काम करते है , प्रेम रिक्त जीवन मे वात्सल्य का झरना बहाते है कुल मिला कर बच्चे के जीवन को मूर्त रूप देने का काम करते है ।

एक पत्नी के मधुर शब्द पति के जीवन मे प्रेम का सागर भर देते है , उसका मधुर प्रणय आग्रह उसे कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी उबरने मे सहायता करने मे सक्षम होता है । इसके विपरीत होने पर स्थितियॉ भी विपरीत ही होती है , सफलता पूर्वक चल रही जीवन की नैया को डुबोने का ही काम करती है ।

रिश्तों की सौगातों को सहेज कर रखने मे सहायक है ये हमारी भाषा शैली , यदि इसका उपयोग सही दिशा मे व सही तरीके से किया गया हो तो रिश्तों की गर्माहट बनी रहती है ,  अन्यथा ये भाषा ही दिलों मे दरार पैदा करने का काम करती है ,  परिवारों को तोड़ने का काम करती है ।
एक कर्मचारी अपने बॉस की निगाह मे सिर्फ अपनी मधुर वार्तालाप के जरिये बड़ी अच्छी इमेज बना लेता है , वही एक बॉस  अपने कटु एवं कर्कश भाषा से अपने बॉस तो क्या किसी कर्मचारी के दिल मे भी जगह नहीं बना पाता ।

सास बहू के रिश्तों की मिठास भी इसीलिए कम हो जाती है क्योकि दोनों का एकदूसरे के प्रति अन्यमनस्क भाव बना रहता है । जिन घरों मे दोनों पक्षों मे एक दूसरे के साथ मधुर वार्तालाप चलता है एक दूसरे का सम्मान होता है वहाँ सदैव प्रेम की 

निर्झरिणी बहती रहती है ।
 वार्तालाप के प्रभाव का अद्भुत उदाहरण आपको इन पंक्तियों मे दिख सकता है ; 
एक गुरु जी  अपने  शिष्यों के हेतु जंगल मे औषधि ढूँढने गए थे ,वहाँ एक सिपाही भी किसी को खोजता हुआ आया ,एक शिकारी
भूख प्यास से व्याकुल उसी जंगल मे भटकता फिर रहा था। तीनों को प्यास लगी , वे तीनों जल की तलाश मे भटकते - भटकते एक कुटिया के समीप पहुंचे । एक वृद्धा  स्त्री जो देख नहीं सकती थी वहाँ बैठी कृष्ण के भजन गाती जाती थी और आते जाते   प्यासे लोगों  को पानी पिलाती जाती थी , एकदम निष्काम सेवा कर रही थी उसे लोगों से दुआओ के सिवा कुछ नहीं चाहिए था ,  प्यास से व्याकुल शिकारी ने तिलमिलाते हुये उस वृद्धा स्त्री से कहा- ऐ  अंधी ला जल्दी से पानी पिला वरना तेरा जल का पात्र फोड़ दूंगा ! , वृद्धा ने प्रत्युत्तर दिया - चल हट चिड़ीमार कहींका !  बेजुबानों की जान लेता फिरता है , जा नहीं देती पानी ! ,  उसके जाने के बाद सिपाही आया बोला - ऐ बुढिया ! पानी पिला दे जरा , चाहे तो धन ले ले  !
वृद्धा ने चिढ़ कर कहा - राजा का सिपाही है मुझे धन का लोभ दिखाता है जा नहीं मिलेगा पानी ! , दूर खड़े गुरु जी यह सब देख रहे थे वे पास गए और बड़ी ही विनम्रता से बोले - माँ ! परदेसी हूँ बहुत प्यासा हूँ थोड़ा जल मिलेगा क्या ? वृदधा ने भी बड़े ही प्यार और मधुर स्वर मे कहा - अहो भाग्य ! जो मेरी कुटिया मे आप पधारे ! तत्पश्चात वह मटके से शीतल जल निकाल कर पिलाने लगी । गुरु जी ने उस स्त्री से पूछा- माँ ! ये तो बता कि आप तो देख नहीं सकती फिर कैसे जाना कि आने वाला पहला व्यक्ति शिकारी है , दूसरा सिपाही और तीसरा मै । वो स्त्री बोली - बेटा ! बातचीत के तरीके से  ही इंसान  की पहचान हो जाती है ।  

इसीलिए कहा गया है :-
                
                 ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय ।
                 औरन को सीतल करे अपहु सीतल होय ॥
     

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