Friday 9 March 2012

होलीकोत्सव

                        होलिकोत्सव एक सोमयज्ञ 


 हास परिहास , ठिठोली , चुहलबाजी , छेड़छाड़ , मौज मस्ती और मिलने जुलने का प्रतीक लोकप्रिय पर्व  है होली ।  यह पर्व वास्तव मे वैदिक यज्ञ है ,किन्तु आज इसका रूप विस्तृत हो गया है , आज के समय मे इस पर्व का वैदिक रूप खो सा गया है , इसको समझने के लिए हमे इस महापर्व के मूल मे निहित वैदिक सोमयज्ञ के स्वरूप को समझना पड़ेगा ।
वैदिक यज्ञों मे सोम यज्ञ सर्वोपरि है , वैदिक काल मे  अधिकता से उपलब्ध सोमलता का रस निचोड़ कर उससे जो यज्ञ सम्पन्न किए जाते थे , वे सोम यज्ञ कहे गए हैं । ग्रन्थों मे इसके कई विकल्प दिये गए है , जिनमे पूतिक और अर्जुन व्रक्ष ,प्रमुख है । अर्जुन वृक्ष  को  हृदय  के लिए अत्यंत लाभ कारी माना गया है , सोमरस इतना शक्तिवर्धक और उल्लास कारी होता था की उसका पान कर ऋषियों को अमरता जैसी अनुभूति होती थी । इस दिन यज्ञ अनुष्ठान  के साथ कुछ ऐसे मनोविनोद  पूर्ण कृत्य किये जाते थे  जिनका प्रयोजन हर्ष और उल्लास मय वातावरण उपस्थित करना होता था ।

होलिकोत्सव भी इसी परम्परा का संवाहक है .होली में जलाई जाने वाली आग यज्ञ वेदी में निहित अग्नि का प्रतीक है । इसलिए वेदी के समक्ष या समीप एक गुलर की टहनी गाड़ी जाती थी , क्योंकि गुलर का फल गुण की दृष्टि से सर्वोपरि  माना जाता हैं । धीरे धीरे इस वृक्ष का मिलना लगभग असंभव सा हो गया तो इसके स्थान पर अन्य वृक्षों की टहनियां कम में ली जाने लगी , इसी क्रम मे एरण्ड् वृक्ष्  को शुभ माना जाने लगा ,  इसीलिये एरण्ड् वृक्ष् की  लकडी का प्रयोग किया जाने लगा ।  संस्कृत में एक कहावत है :- निरस्तपादपे देशे  एरण्ड् अपि द्रुमायते ।  इसके नीचे बैठ कर  वेद पाठी  श्लोंकों का गायन किया करते थे , इसके  साथ ही जल से भरे कलश लिए हुए स्त्रियाँ नृत्य करती थी , सभी कोण में दंदुभी ,नगाड़े भी बजाये जाते थे, इस नृत्य के साथ ही साथ स्त्रियाँ एवं पुरुष  विभिन्न प्रकार के वाद्य  यंत्रों को बजा कर मनोरंजन किया करते  थे , एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते हुए वभिन्न बोलियाँ बोलते थे विशेष कर ग्राम्य बोलियों का प्रदर्शन किया जाता था  ,  घरों में स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के पकवान बनाती थी  महाव्रत के ये विधान वर्ष भर की एकरसता को दूर कर स्वस्थ मनोरंजन का वातावरण , प्रदान करते थे । धीरे धीरे होली जो मुख्य रूप से एक वैदिक यज्ञ के रूप में आरंभ हुआ अगेचल कर भक्त प्रलाद के आख्यान से जुड़ गया तथा  मदनोत्सव अथवा बसंतोत्सव नाम का समावेश इसी में हो गया । इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ पर्व भी कहा जाता है यहाँ हम अन्य कई मतों का भी उल्लेख करेंगे :-

1) ऐसी मान्यता है की इसका सम्बन्ध काम दहन से है क्योंकि भगवन शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से काम देव को भस्म कर दिया था तभी से इस त्यौहार का प्रचलन हुआ .

२) फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा पर्यंत आठ दिन का होलाष्टक मनाया जाता है . भारत के कई स्थानों में होलाष्टक शुरू होने पर किसी एक पेड़ की शाखा काटकर जमीं में गाड दियाजाता है  सभी लोग इसके नीचे होलिकोत्सव मानते है .

३) यह त्यौहार हिरन्यकश्यप की बहिन होलिका की स्मृतीं में भी मनाया जाता है

४) भविष्य पुराण में कहा गया है की एक बार नारद जी ने महाराज  युधिष्ठिर से कहा :"राजन ! फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सबको अभय दान देना चाहिए , जिससे सम्पूर्ण पजा उल्लास पूर्वक हँसे . बालक गांवों के बहार लकड़ी के ढेर लगायें
लगायें ,होलिका का पूर्ण सामग्री सहित विधिवत पूजन करें , होलिका दहन करें ऐसा करने से सरे अनिष्ट दूर हो जाते है . इसके साथ  हर्ष और उल्लास के साथ होली मनाएं .


 
होली  की बहुत  बहुत बधाई . 

4 comments:

  1. .

    इतने श्रम और लगन से लिखी गई इस पोस्ट के लिए आपकी जितनी प्रशंसा करूं , कंम है…
    आभार !


    साथ ही
    स्वीकार करें मंगलकामनाएं आगामी होली तक के लिए …
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    ♥होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार !♥
    ♥मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !!♥


    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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  2. good post , it opens too many unknown facts related to HOli ...
    thanks for sharing such a great knowledge with us, i wish in comming period we must catch the opportunity again for enhancing our knowledge on some folded issues........

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  3. वाह सुंदर प्रस्तुति
    बधाई

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  4. mere bhi blog main sammlit ho aagrah hai
    jyoti-khare.blogspot.in

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