शक्ति की
उपासना – कुछ तथ्य
रघुवंश
महाकाव्य का श्री गणेश करते हुये महाकवि कालिदास ने कहा है कि -
“वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तए ।
जगतः पितरौ वंदे पार्वती परमेश्वरौ ॥“

अर्धनारीश्वर रूप है उन महादेव को मै प्रणाम
करता हूँ ।


अपना मुख उस दर्पण मे देखा तो उन्हे वहाँ
शिव जी नजर आए , पार्वती जी ने पीछे पलट कर देखा वहाँ शिव जी थे ही नहीं , उन्होने दुबारा दर्पण मे देखा तो वहाँ
पार्वती जी स्वयं नजर आई , उन्हे बड़ा अचंभा हुआ , पुनः दर्पण देखने पर वहाँ शिव पार्वती के
साथ एकाकार नजर आये अर्थात शिव पार्वती का
अर्धनारीश्वर रूप दिखाई दिया । पार्वती जी को समझ आ गया कि वे दोनों ही मिलकर एक है
, शिव ही शक्ति है शक्ति ही शिव
है , शिव के बिना शक्ति अधूरी हैं
और शक्ति के बिना शिव अधूरे है , वे मिलकर ही पूर्ण है , तब जाकर उनकी ग्लानि दूर हो पाई ।
भगवत शंकराचार्य जी ने “सौन्दर्य लहरी “ की
रचना कर परम पावनी माँ जगदंबिका की आराधना की थी ।
“ शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुम् ,
नचेदैवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि ।
अत्स्त्वामाराध्यां हरिहर विरञ्चादिभिरपि ,
अर्थात :- भगवान शिव शक्ति से युक्त होकर ही श्रष्टि का संचालन
करने मे समर्थ हो पाते हैं । भगवती पराशक्ति से युक्त न होने पर उनमे स्पंदन तक संभव
नहीं है । श्रष्टि, स्थिति , संहार , संतुलन रखने
मे भी वे स्वयं अकेले समर्थ नहीं है क्योंकि प्रकृति के बिना पुरुष कल्पना मात्र है
। हे ! माँ जन्मांतरीय पुण्यों के उदय होने पर ही त्रिदेवों द्वारा पूजनीया आपकी स्तुति
, पूजन , वन्दन करने का अधिकारी बन कोई
व्यक्ति आपकी चरण रज प्राप्त कर सकता है ।
क्रमशः
गतांक से आगे –

उसी प्रकार दूसरी ओर सभी देवियों को भी वे तत्वतः एक ही मानते
है ।
देवी का कथन है – मैं रुद्रों एवं वसुओं के रूप मे विचरण करती
हूँ । मै ही आदित्यों एवं विश्वेदेवों के रूप मे निवास करती हूँ , मै मित्रवरून को धारण करती हूँ और मै ही अग्नि
एवं अश्विनी कुमारों की आधार भूमि हूँ । इस प्रकार सिद्ध होता है कि शक्ति तत्व के द्वारा ही यह ब्रम्हांड संचालित होता है
, शक्ति के अभाव मे न तो “ एकोअहम् बहु स्याम् “ सृदृश सिद्धांतों कि सार्थकता संभव है और न ही
महादेव क़ी महादिव्यता दैदीप्यमान हो पाती है । शक्ति उपासना ने आज के समय मे चाहे जो
रूप धारण किया हो किन्तु यथार्थ मे यह सृष्टि या प्रकृति की उपासना ही है । हम सीधे
मायनो मे यह नहीं कह पाते कि आज हमारा सृष्टि या प्रकृति के लिए गया उपवास है ।
उपासना के निमित्त शक्ति संचय
संयम , सात्विक आहार , नियमित परिश्रम , अहिंसा , माता – पिता तथा गुरु की सेवा , पवित्रता और ब्रम्ह्चर्य आदि के द्वारा शारीरिक शुद्धि रखते हुये सबसे बडी
आराधना कि जा सकती है ।
क्रमशः
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