सशक्तिकरण की प्रक्रिया :-
संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट ,१९९५ के अनुसार मानव विकास प्रतिमान के चार अंग हैं :-उत्पादकता , निष्पक्षता या साम्यता , निरंतरता और सशक्तिकरण . लोगो की क्षमताओं का विकास कर उनकी रचनात्मकता व् उत्पादकता को बढाया जाना चाहिए जिससे वे विकास के सच्चे व् प्रभावी प्रतिनिधि साबित हो सकें . आर्थिक विकास के लाभ का बटवरा सामान रूप से व् न्यायपूर्ण होना चाहिए . वर्तमान व् भावी संतानों को सामान अवसर मिलने चाहिए . मानव का विकास लैंगिक समानता के बिना अधूरा है जब तक महिलाओं को विकास की प्रक्रिया से से बहार रखा जायेगा , विकास अधूरा रहेगा .
संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट ,१९९५ के अनुसार मानव विकास प्रतिमान के चार अंग हैं :-उत्पादकता , निष्पक्षता या साम्यता , निरंतरता और सशक्तिकरण . लोगो की क्षमताओं का विकास कर उनकी रचनात्मकता व् उत्पादकता को बढाया जाना चाहिए जिससे वे विकास के सच्चे व् प्रभावी प्रतिनिधि साबित हो सकें . आर्थिक विकास के लाभ का बटवरा सामान रूप से व् न्यायपूर्ण होना चाहिए . वर्तमान व् भावी संतानों को सामान अवसर मिलने चाहिए . मानव का विकास लैंगिक समानता के बिना अधूरा है जब तक महिलाओं को विकास की प्रक्रिया से से बहार रखा जायेगा , विकास अधूरा रहेगा .
महिला सशक्तिकरण काकार्यगतढांचा , द्रष्टिकोण के तहत प्रवेश मार्ग की बाधाओं को दूर करने में व्यवस्थित भेदभाव के खिलाफ संघर्ष शामिल hai जिसे केवल प्रत्यक्षीकरण और भागीदारी से ही किया जा सकता hai . प्रत्यक्षीकरण में महिलाओं की यह स्वीकृति निहित hai की उनकी अधीनस्थता " प्राकृतिक " नहीं है ,वह समाज के द्वारा बनाई गई भेदभावना पूर्ण प्रणाली के द्वारा थोपी गई है . इसलिए इसे उतर कर दूर फेका जा सकता है , भागीदारी की समानता का अर्थ है समाज में महिलाओं को निर्णय निर्माण प्रक्रिया में दिखावे के तौर पर नहीं बल्कि उन्हें पूर्ण रूप से शामिल करना उन्हें सक्रिय सक्रीय होने योग्य बनाना , संसाधनों व् सेवाओं तक पहुँच में भेदभाव के खिलाफ कार्यवाही करना . नियत्रण शब्द में केवल भौतिक साधनों पर ही नियंत्रण की बात नहीं है , नियंत्रण की समानता का अर्थ है स्त्री व् पुरुष के बीच सत्ता का संतुलन ताकि कोई भी दूसरे पर हावी न हो सके .
इसकी दूसरी विशेषता लैंगिक भूमिकाओं का प्रतिपादन है .यह वह बिंदु है जसे योजनाओं के निर्माण या क्रियान्वयन के स्तर पर अक्सर भुला दिया जाता है .
सशक्तिकरण को सक्षम बनाने की एक प्रक्रिया के रूप में भी देखा जाता है ,इसके तहत समाज में स्त्री पुरुष समानता व् विकास में महिलाओं की बराबर की भागीदारी की दिशा में परिवर्तन की प्रक्रिया और तंत्र को लागू किया जाना और परिवारों / समाजों के भीतर व् परस्पर सत्ता का पुनर बटवारा शामिल है .
यह एक प्रक्रिया है कोई वस्तु नहीं जो लोगो को पकड़ाई जा सके . सशक्तिकरण की प्रक्रिया व्यैक्तिक स्व अभिकथन से सामूहिक दबाव , विरोध और सक्रियता है जो आधारभूतशक्ति संबंधों को चुनौती देती है . महिलाओं के सशक्तिकरण को कुछ अंतर्सम्बंधीय व् प्रचार पुनर्सब्लिकरण तत्त्वों का सम्मिश्रण के रूप में देखा जा सकता है जैसे की :-
१) नियंत्रण होना और अधिक नियंत्रण प्राप्त करना ,
२) अपनी बात कहने व् उसे मनवाने की क्षमता ,
३) महिलाओं के नजरिये से परिभाषित करने और रचने की क्षमता ,
4) पूरे समाज को प्रभावित करने वाले फैसलों व् सामाजिक विकल्पों को प्रभावित करने की क्षमता ,
५) एक सम्मानित नागरिक व् इंसान के रूप में पहचाना जाना और सम्मानित होना साथ ही दूसरों को भी ऐसा नागरिक बनाने की क्षमता रखना .
६) क्षमता निर्माण व् कौशल विकास ,
संक्षेप में सशक्तिकरण जागरूकता व् क्षमता विकास की वह प्रक्रिया है जो बढ़ चढ़ कर भागीदारी , वृहत्तर निर्णय निर्माण अधिकार , और नियंत्रण की क्रिया की और ले जाती है .
१) नियंत्रण होना और अधिक नियंत्रण प्राप्त करना ,
२) अपनी बात कहने व् उसे मनवाने की क्षमता ,
३) महिलाओं के नजरिये से परिभाषित करने और रचने की क्षमता ,
4) पूरे समाज को प्रभावित करने वाले फैसलों व् सामाजिक विकल्पों को प्रभावित करने की क्षमता ,
५) एक सम्मानित नागरिक व् इंसान के रूप में पहचाना जाना और सम्मानित होना साथ ही दूसरों को भी ऐसा नागरिक बनाने की क्षमता रखना .
६) क्षमता निर्माण व् कौशल विकास ,
संक्षेप में सशक्तिकरण जागरूकता व् क्षमता विकास की वह प्रक्रिया है जो बढ़ चढ़ कर भागीदारी , वृहत्तर निर्णय निर्माण अधिकार , और नियंत्रण की क्रिया की और ले जाती है .
No comments:
Post a Comment