बेटियाँ घर आँगन की
रौनक
जिस प्रकार एक उपवन बिना
चिड़ियों की चहचहाहट के अधूरा और सूना-सूना लगता है उसी प्रकार बेटियों के बिना घर
का उपवन, आँगन भी अधूरा और सूना लगता है। इसका दर्द वही समझ पाता है जिस
घर में बेटी नहीं होती। सोच कर देखिये ।
इतिहास उठा
कर देखे तो हम पाएंगे कि तब से आज तक वक़्त ने स्त्रियॉं से खुद के होने के सबूत मांगे हैं । लेकिन यह भी सत्य
है कि उसने स्त्रियॉं को सफलता के झंडे गाड़ते देखा है| हमारे देश की कई बेटियों ने इतिहास रचा
है |देश की बेटियाँ हर क्षेत्र में देश का गौरव बन कर हम सब के लिए प्रेरणादायक रही हैं | देवी अहिल्या, सीता , गार्गी , लक्ष्मी बाई, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी, लता मंगेश्कर दीदी एवं अनेकानेक महिलाएं एवं
बेटियाँ जिन्होने प्रत्येक क्षेत्र मे अपनी कुशलता का परिचय दिया है । घर परिवार
को संभालना हो या बाहर निकल कर किसी भी क्षेत्र में ,
स्त्री ने खुद को बेहतर साबित किया है ।
आज तकरीबन सभी नेताओं को
कहते सुना जा सकता है कि जब बेटियाँ सशक्त होंगी, तभी प्रदेश सशक्त होगा और आगे बढ़ेगा। सरकारें बेटियों की रक्षा करने, उन्हें आगे बढ़ने में सहयोग देने के
लिये तैयार है। बेटियों की तरक्की में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आने दी जायेगी।
बेटियां बड़ी सोच रखेँ,
आत्मविश्वास रखें,
आगे बढ़ने का रोडमैप बनायें और पूरी एकाग्रता तथा दृढ़ निश्चय के साथ
सफलता हासिल करें। देश का गौरव बढ़ायें और प्रदेश की शान बन जायें। बेटियाँ कमजोर
नहीं होतीं, इसलिए
हमेशा सकारात्मक सोचें। नकारात्मक विचारों से दूर रहें। अहंकार से दूर रहें, उत्साह से भरपूर रहें। कठिन परिश्रम
करें और हर परिस्थिति में निरपेक्ष रहें।बड़ा लक्ष्य तय करें और आत्मविश्वास के साथ
कठिन परिश्रम करते हुए सफलता हासिल करें, तब जाकर कहीं सरकार उनका साथ देगी
। आज जब बेटियाँ खुद अपने कंधों को मजबूत बना रहीं है और लड़ाकू विमान तक उड़ाने
लगीं है । क्या तब भी स्त्री को यह साबित करने की जरूरत है कि वह किसी से कम नहीं ? कम से कम ऐसा मैं तो नहीं समझती । बल्कि उसने
साबित कर दिखाया है कि वह किसी से कम नहीं है । लोग माने तो,
न माने तो भी स्त्री ने मानने के लिए मजबूर कर दिया है ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना आज भले ही सरकार
भी चला रही है लेकिन इस बाबत व्यक्तिगत प्रयास भी कम महत्त्व पूर्ण नहीं है। विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाएँ एवं निजी प्रयासों के
बेहतर परिणाम हमारे सामने है । इसी कड़ी में एच. एन. मीणा जो की
भारतीय राजस्व सेवा के 2004 बैच के अधिकारी है और उनकी पत्नी डॉ
हेमलता मीणा पिछले 8 वर्षों से कन्या भ्रूण हत्या व् महिलाओं के
अधिकारों के लिए देश भर में आंदोलन चला रहे हैं । हिंदुस्तान की आजादी के बाद की पहली जनगणना
जो सन्
1951 में हुई ,के आंकड़ो के
अनुसार प्रति हज़ार पुरुषो पर 946 महिलाएं थी उस समय ,लेकिन
अफ़सोस आजादी के दशको बाद भी यह आंकड़ा प्रति हज़ार पुरुषो पर 940 महिलाओं
पर ही सिमट के रह गया है। देश में सन् 2011 की जनगणना के
अनुसार 3.73 करोड़ महिलाएं कम है ,कुल देश की
जनसँख्या 121 करोड़ में से। देश में 0-6 आयुवर्ग
में लिंगानुपात सन् 1991 की जनगणना के आकड़ो के अनुसार 945
था
जो घटकर सन् 2001 की जनगणना में 927 पर आ गया और यह
सन् 2011की जनगणना के आकड़ो के अनुसार 918 पर आ गया।यह
आंकड़े देश में लिंगानुपात की विषम होती
चिंताजनक स्तिथि को दर्शाते हैं। यदि हालात यही रहे तो आने वाले वर्षो में स्थिति
और चिंताजनक हो सकती है। देश में स्त्री पुरुष जनसंख्या के हिसाब से भी बराबरी पर
नहीं है। भारत सरकार और राज्य सरकारो ने अपने अपने स्तर पर इस स्तिथि से निपटने के
लिए कई प्रकार से प्रयास किये हैं।लेकिन पिछले 20 वर्षो का देश के
लिंगानुपात में महिलाओं की संख्या कम होने के कारण और उनसे निपटने के अब तक के
किये गए सम्मलित प्रयासों का अध्ययन /अनुभव यह कहता है कि जब तक हम सब इस घृणित
बुराई के खिलाफ खड़े नहीं होंगे इससे मुक्ति संभव प्रतीत नहीं होती और इसके लिए
हमें देश भर में आंदोलन चलाने की जरूरत है। देश की सरकार, बहुत सारे
सरकारी गैर सरकारी संगठन और लोगो के
व्यक्तिगत प्रयास जारी है। एच एन मीणा एवं उनकी पत्नी डॉ हेमलता मीणा दोनों
पति -पत्नी इस पुनीत कार्य में कई वर्षो से अपनी श्रद्धानुसार ,किसी
से कोई चंदा उगाई के बिना सिर्फ अपने वेतन में से एक हिस्सा खर्चा करके
बेटियों को बचाने की दिशा में लोगो को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं। कई
वर्षो में अब तक इन्होंने इस कार्यक्रम को बिना किसी से वित्तीय सहयोग के
चलाया । जब तक देश से यह
लिंगानुपात की खाई मिट नहीं जाती उनका हर स्तर पर, सरकारी नौकरी की व्यस्तताओं के बीच
भी रविवार आदि छुट्टी के दिनों में भी बेटियों को बचाने के लिए प्रयास जारी
रहेगा । यह अंतर तब तक नहीं
पाटा जा सकता है जब तक की हमारी स्त्रियों के प्रति सोच में आमूलचूल परिवर्तन नहीं आ जाए। इसके लिए हमें एक ऐसे
आंदोलन की जरूरत है जो लोगो की सोच में एक हद तक ऐसा परिवर्तन ला पाये जिसके आईने
में हमें लड़का लड़की में भेद नज़र नहीं आये । अनेक प्रयास जारी है कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए ।
कुछ कुंठित मानसिकता वाले
लोगों के चलते स्त्री का सम्मान प्रभावित हुआ है। स्त्री जन्म दर प्रभावित हुयी है
। इसमें सरकार का हस्तक्षेप होना अत्यंत आवश्यक है । जिससे काफी हद तक समस्या का
समाधान किया जा सकेगा । सरकारें कम से कम उन सबकी सहायता करे जो इस मुहिम को चला
रहे है ।
प्रेषिका
अन्नपूर्णा बाजपेयी ‘अंजु’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-04-2017) को "ग्रीष्म गुलमोहर हुई" (चर्चा अंक-2932) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'