ग्रीष्म के अवसान पर काले-काले
कजरारे मेघों को आकाश मे घुमड़ता देख पावस ऋतु के प्रारम्भ मे पपीहे की पुकार और वर्षा
की फुहार से आभ्यंतर आप्लावित एवं आनंदित होकर जीव जन्तु सभी इस मास को पर्व की तरह
मनाने लगता है। मनुष्य तो सावन के मतवाले मौसम में झूम उठता है , पक्षियों की भी मधुर आवाजें सुनाई देने लगती है मानो
कह रहे हो कि अब राहत मिली । इस मौसम मे कवि मन कुछ नया लिखने को मचलने लगता है।
मेहंदी वाले वन फूले
गंध के उपवन फूले
डाली पड़ गए झूले
हर तरफ हरियाली के साथ-साथ
मेहंदी की खुशबू और मेहंदी रचे हाथ और डालियों पर झूले दिखने लगते है । सावन
और कजरी का चोली दामन का साथ है ,
झूला झूलती हुई महिलाएं जब इन
गीतों को गाती है तब मन मचल उठता है । लोक जीवन कजरी के बोलों
की गूंज से गुंजायमान हो उठता है इस पंक्ति
मे देखे कितना सुंदर चित्रण है -
रिमझिम बरसेले बदरिया,
गुइयां गावेले कजरिया
मोर सवरिया भीजै न
वो ही धानियां की कियरिया ।
सावन में ही नयी ब्याही बेटियाँ अपने पीहर आती है । पिता के घर आकर उन्हे सब कुछ नया और आनंदित कर
देने वाला लगता है । अपने पिया को वह भूल नहीं पाती । सखियाँ और घर पर बहने और भाभियाँ
उनसे चुहल करती है । छेड़छाड़ भरे इस माहौल में जिन महिलाओं के पति
बाहर गये होते हैं, वे भी विरह में तड़पकर गुनगुना उठती हैं ताकि
कजरी की गूँज उनके प्रीतम तक पहुँचे और शायद वे लौट आयें-
सावन बीत गयो मेरो रामा
नाहीं आयो सजनवा ना।
भादों मास पिया मोर नहीं आये
रतिया देखी सवनवा ना।
यह सावन मौसम की सुन्दरता और उल्लास का
उत्सवधर्मी पर्व है। चरक संहिता में तो यौवन की संरक्षा व सुरक्षा हेतु बसन्त के
बाद सावन महीने को ही सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। मन को सुकून देने वाल यह मास धरती को हरा भरा कर देता है,
धरती भी मुस्कुरा कर झूमने लगती है ।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.08.2015) को "बेटी है समाज की धरोहर"(चर्चा अंक-2060) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteआपका हरदिक आभार आ0 राजेन्द्र कुमार जी
Deleteसावनी फुहारों लिए सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका आभार कविता जी
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