गरजत बरसत आयो आषाढ़
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आषाढ़ माह का पहला दिन धरती और अंबर का मिलन
दिवस माना जाता है। सच कहें तो फागुन के बाद और सावन से पहले लड़कपन और यौवन का
कुछ-कुछ अंश लिए आषाढ़ ही जीवन की उन वास्तविकताओं को उकेरता है, जिसमें
तपकर मनुष्य का जीवन उद्देश्य प्राप्त करता है। थोड़ी-सी कसक लिए मौसम की गर्मी और
कुछ ठसक लिए साल के बौछार की पहली फुहार न केवल यथार्थ के दो भिन्न पहलुओं को
चित्रित करती है, बल्कि जीवन के कैनवास पर विचारों के एक्रेलिक
रंगों से 'पुनर्मिलन' के मुहूर्त को सजाती है। यही तो वह दिन
है जब 'जेष्ठ की रोहिणी' की तप्तता को मृग की बौछार संतृप्त कर
देती है और प्रकृति हरीतिमा से सुभाषित होकर मानवीय जीवन में न केवल आशा का संचार
करती है, बल्कि 'धरांबर' की दूरियों को
नजदीकियों से समेटकर कालीदास की कल्पना को साकार भी करती है। साहित्यकार
का मन आषाढ़ माह आरंभ होते ही कुछ लिखने को कुलबुलाने लगता है ,और
फिर सुंदर कविताओं और कथाओं का सृजन हो जाता है । प्रेम
की एक पूरी कविता है आषाढ़ का माह ,
मोहन राकेश जी का ‘आषाढ़
का एक दिन ‘ । जब
प्रेम का साक्षात स्वरूप अपनी प्रिया से बिछोह के पल अकेले में गुजारता है। यहां
आषाढ़ में 'प्रेम' के स्वर और इम्तिहान दोनों दिखाई पड़ते हैं।
यूं तो पूरे गर्मी में धूप और बादलों में द्वंद्व चलता रहा, नौतपा के आसपास
तूफानी हवाओं, सावनी घटाओं और भादों की बारिश का रंग नजर आया।
बादलों का साथ पाकर लू के थपेड़ों के बीच हवाएं बौरातीं और इतराती रहीं, लेकिन
ग्रीष्म में बिन बुलाए मेहमान की तरह आने और अपनी करने वाले इन बादलों को अब अपना
रूप दिखाना होगा । आषाढ़
के आगाज के दिन केवल प्रकृति के सौंदर्य भर को देखने से कुछ नहीं होगा। उसको बढ़ाने,
उसके
अनुरूप बनने, रसास्वादन करने लायक खुद को बनाने का संकल्प भी
करना होगा। आषाढ़ी उत्सव पर यही कामना करें कि प्रकृति ही नहीं जीवन में भी प्रियतम
और आषाढ़ साथ-साथ आएं। तब देखना आषाढ़ का यह रंग बहुत खूब होगा, बहुत
हसीन भी होगा।
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