Tuesday, 11 February 2014

ओपेन बुक्स ऑन लाइन के महा उत्सव मे मेरी रचना




अतुकांत


बागों बहारों और खलिहानों मे
बांसो बीच झुरमुटों मे
मधुवन और आम्र कुंजों मे
चहचहाते फुदकते पंछी
गाते गीत प्रणय के
श्यामल भौंरे और तितलियाँ
फुली सरसों , कुमुद सरोवर
नाना भांति फूल फूलते
प्रकृति की गोद ऐसी
फलती फूलती वसुंधरा वैसी
क्या कहूँ किन्तु कुम्हलाया
है मन का सरोवर मेरा
भावों के दीप झिलमिलाये ऐसे
रागिनी मे  कुछ जुगुनू  जैसे
नेह का राग सुनाता
जीवन को निःस्वार वारता
 एक पतंगा हो जैसे
प्रकंपित अधर है शुष्क
ज्यों पात विहीन वृक्ष । 

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर और उत्कृष्ट रचना आपकी दीदी जी। शुरू से लेकर अंत तक एक लय में पिरो दिया आपने शब्द को और शब्द ऐसे जैसे हर शब्द गुलाब हो।
    बहुत बधाई आपको

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  2. सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ति है

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  3. आप दोनों का हार्दिक आभार ।

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  4. बहुत सुन्दर रचना

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  5. kyaa sundar shabd chitr prstuta kiyaa hai.
    Vinnie

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