ओपेन बुक्स ऑन लाइन के महा उत्सव मे मेरी रचना
अतुकांत
बागों बहारों और खलिहानों मे
बांसो बीच झुरमुटों मे
मधुवन और आम्र कुंजों मे
चहचहाते फुदकते पंछी
गाते गीत प्रणय के
श्यामल भौंरे और तितलियाँ
फुली सरसों , कुमुद सरोवर
नाना भांति फूल फूलते
प्रकृति की गोद ऐसी
फलती फूलती वसुंधरा वैसी
क्या कहूँ किन्तु कुम्हलाया
है मन का सरोवर मेरा
भावों के दीप झिलमिलाये ऐसे
रागिनी मे कुछ जुगुनू जैसे
नेह का राग सुनाता
जीवन को निःस्वार वारता
एक पतंगा हो जैसे
प्रकंपित अधर है शुष्क
ज्यों पात विहीन वृक्ष ।
बहुत सुन्दर और उत्कृष्ट रचना आपकी दीदी जी। शुरू से लेकर अंत तक एक लय में पिरो दिया आपने शब्द को और शब्द ऐसे जैसे हर शब्द गुलाब हो।
ReplyDeleteबहुत बधाई आपको
सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ति है
ReplyDeleteआप दोनों का हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletekyaa sundar shabd chitr prstuta kiyaa hai.
ReplyDeleteVinnie