Saturday, 25 January 2014

गर्वीला पुष्प !!

शाख पर लगा 
अलौकिक सौंदर्य पर इतराता 
वसुधा को मुंह चिढ़ाता 
मुसकुराता इठलाता 
मस्त बयार मे कुलांचे भरता 
गर्वीला पुष्प !.......... 
सहसा !!!
कपि अनुकंपा से 
धराशायी हुआ 
कण कण बिखरा 
अस्तित्व ढूँढता 
उसी धरा पर 
भटकता यहाँ से वहाँ 
उसी वसुधा की गोद मे समा जाने को आतुर ... 
बेचारा पुष्प !!! 

5 comments:

  1. आतुर तो बेचारा क्यू ?

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  2. madam apke bhaw to bahut aache hai thodi tukbandi aur seekh lo. may god light to you.

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  3. bahut hi sundar kavita h mam
    kavita m tukbandi ki koi anivaryta nahi hoti nath sir
    kavita to dil ki gahrai se nikalti
    bahut hi sundar rachna mam

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