शाख पर लगा
अलौकिक सौंदर्य पर इतराता
वसुधा को मुंह चिढ़ाता
मुसकुराता इठलाता
मस्त बयार मे कुलांचे भरता
गर्वीला पुष्प !..........
सहसा !!!
कपि अनुकंपा से
धराशायी हुआ
कण कण बिखरा
अस्तित्व ढूँढता
उसी धरा पर
भटकता यहाँ से वहाँ
उसी वसुधा की गोद मे समा जाने को आतुर ...
बेचारा पुष्प !!!
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ReplyDeleteआतुर तो बेचारा क्यू ?
ReplyDeletemadam apke bhaw to bahut aache hai thodi tukbandi aur seekh lo. may god light to you.
ReplyDeletebahut hi sundar kavita h mam
ReplyDeletekavita m tukbandi ki koi anivaryta nahi hoti nath sir
kavita to dil ki gahrai se nikalti
bahut hi sundar rachna mam
apka hardik dhanyvad respected Deep ji .
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