स्वच्छ गगन
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स्वच्छ गगन मे
सुवर्ण सी धूप
भोर की किरण ने
आ जगाया ।
अर्ध उन्मीलित नेत्र
उनींदा मानस
आलस्य पूरित
यह तन मन
पंछियों ने राग सुनाया ।
कामिनी सी कमनीय
सौंदर्य की प्रतिमा
नैसर्गिक छटा
फैली चहुं ओर
मुसकाते सुमन
झूमते तरुवर
नव जोश जगाया ।
हुआ प्रफुल्लित ये मन
तोड़ कर मंथर बंधन
मानो रोली कुमकुम
आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई
क्या बात .... पढ़ कर मन खुश हो गया .. बधाई
ReplyDeleteआ0 मीना जी आपका हार्दिक आभार ।
Deleteआपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
ReplyDeleteस्वच्छ गगन मे
सुवर्ण सी धूप
भोर की किरण ने
आ जगाया ।
शनिवार 05/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
जी आदरणीया अवश्य , आपका हार्दिक आभार ।
Deleteआदरणीय आपका हार्दिक आभार , अवश्य आपके इस ब्लॉग पर अपनी प्रविष्टि देख कर मुझे भी बेहद हर्ष होगा । सादर ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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