सपने !!!!!!!
सुहाने से
सँजोये थे जो मन के
भीतर आवरणो की परतों मे
सँजोया और सींचा था
नव पल्लव देख
मन झूम उठा था
खुशी के अंकुर भी
फूट पड़े थे
उड़ान की आकांक्षा मे
पंखों को कुछ फड़फड़ा कर
ज्यों हुआ उड़ने को आतुर !!!!
आह !!
पंख कतर दिये किसने ?
धराशायी हुआ
स्वर भी बाधित हुआ
जख्म लगे
अभिलाषी मन
परित्यक्त सा
कुलबुला उठा
अश्रुओं ने साथ छोड़ा
धैर्य ने भी हाथ छोड़ा
वो अकुलाहट !!!!
बरस उठी बरबस
कुछ शांत हुआ अब जाकर मन
सपने !!!!!
कुछ भी न थे शेष
न अभिलाषा थी
दुबारा फिर सँजोने की
श्रेयस्कर था त्यागना ही
पुनः जीवन धारा मे लौट कर
अविरल बहना
पथ पर आगे बढ़ना
सदा ही निरंतर ।.....................अन्नपूर्णा बाजपेई
sapne ,achchi kavita hai shabdo ka szyojan or behtar kare
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना .
ReplyDelete.. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (30.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार ।
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