Monday 16 September 2013

दूर तलाक शून्य मे - कविता





एक शाम
उदास सी थी
निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित
निहारती सी
दूर तलक शून्य मे।  
कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन
अचेतन जड़ हो गए जो
पुकारती सी
दूर तलक शून्य मे ।
नेपथ्य से कुछ सरसराहट
वैचारिक या मौन
विजयी पर प्रसन्न नहीं
श्रोता सी
दूर तलक शून्य मे ।
अन्तर्मन के क्रंदन को
छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो
अलौकिक आभा थी
दूर तलक शून्य मे ............... । 

1 comment:

  1. अन्तर्मन के क्रंदन को

    छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो

    अलौकिक आभा थी

    दूर तलक शून्य मे ............... । अति उत्तम रचना .. बधाई

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