Tuesday 10 September 2013

प्यारी धरती माँ !!!


सींच कर अपने रक्त से

गढ़ती है नित नए कलेवर

असंख्य रत्नों का भंडार,

है सोने सा तन इसका ,

हरा भरा आंचल ,

सुंदर सलिल सरितायेँ ,

मोहक रूप मनोहर

ये धरती है निर्माता ।

गोदी मे खेले इसकी

बालक हो या बालिका

न करती कभी कोई भेद ,

ये धरती है निर्माता ।

कितनों ने ही नोचा इसको

सुंदरता को छीना है

बच्चों को भी मारा है

उफ ! भी न किया कभी

बस सबको ही पाला है

ये धरती है निर्माता ।

जो रूठ गई

 तो क्या करोगे

देख न सकोगे

विध्वंस इसका

झेल न सकोगे

नूतन दंड इसका

मत भूलो !!!

 ये ही माता है

ये  ही निर्माता है ।




3 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना, बधाई आप को

    ReplyDelete
  2. यही पृथ्वी जीवन का आधार है ना जाने कितने रूपों में. सुन्दर कविता.

    ReplyDelete