Tuesday 10 September 2013

शिक्षा समाज का अभिन्न अंग -1

शिक्षा समाज का अभिन्न अंग

आज की दुनिया मे शिक्षा और विकास मे सीधा संबंध है । देश के विकास के लिए शिक्षा महत्तव पूर्ण अंग है । देश की जनसंख्या का आधा हिस्सा चूंकि महिलाएं है इसलिए विकास के क्षेत्र मे उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता । कहा भी गया है शिक्षित माँ ही एक शिक्षित और स्वस्थ समाज की संरचना कर सकती है । इसलिए ये ज्यादा जरूरी है कि देश की विकास की प्रक्रिया मे उनकी भूमिका को भी महत्त्व दिया जाना चाहिए और दूसरी बात ये कि वे अपनी भूमिका को बेहतर तरीके से निभा सके इसके लिए उन्हे जरूरी शिक्षा भी दी जानी चाहिए । समाज का महत्तव पूर्ण अंग कही जाने वाली महिलाएं तब दोयम दर्जे का शिकार नहीं होंगी उनका अपना स्वतंत्र स्थान होगा ।
भारत मे आधी से ज्यादा महिलाएं गांवों मे रहती है और उनकी शिक्षा कि ओर किसी का ध्यान नहीं जाता । वे खुद भी अपनी शिक्षा के प्रति बेहद उदासीन है । घर के कामों को करने बाद वे खाली रहना ज्यादा पसंद करती है यदि उनमे से कोई महिला शिक्षा की ओर उन्मुख होती है तो वे स्वयम ही उसके खिलाफ खड़ी हो जाती है । आज उन महिलाओं के अंदर अलख जगाने की आवश्यकता है । ये महिलाए एक बहुत बड़ा समाज रचती है । अशिक्षित महिलाएं अपने बच्चों को कोई रचनात्मक शिक्षा नहीं दे सकतीं और न ही समाज मे कोई स्थान बना पाती है । ये हमेश उपेक्षित जीवन ही जीती रहती है ।
समाज मे फैली अनेकों बुराइयाँ इसी अशिक्षा की देन है । अशिक्षा को दूर करने के उपाय किए जाने चाहिए । इससे  अंधविश्वास, पर्दा प्रथा , असभ्य आचरण , अशिष्ट व्यवहार दूर होने मे सहायता मिलेगी । यहाँ एक बात और ध्यान देने योग्य है कि शिक्षा केवल औपचारिक न होकर रचनात्मक हो । आजादी से पूर्व ब्रिटिश काल मे अंग्रेजों ने हमारे हिंदुस्तानियों को शिक्षा मुहैया कराई थी लेकिन यह औपचारिक ही थी जिससे सरकारी महकमों का काम चलता रहे सरकारी काम काज मे बाधा  न आए । हिदुस्तानियों को इसी औपचारिक शिक्षा की आदत पड़ गई । और वे इसी औपचारिक शिक्षा के रास्ते चल पड़े । महिलाओं को घर से बाहर काम करने की मनाही थी इसलिए उनकी शिक्षा पर ध्यान ही नहीं दिया गया । महिलाएं भी अपने इसी जीवन से संतुष्ट थी इस लिए किसी को ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं थी ,कुछ परिवारों मे जहां बेटी और बेटे मे फर्क नहीं किया जाता था वहाँ उनके माता पिता ने लड़कियों की शिक्षा पर ज़ोर दिया और उन्हे पढ़ाया लिखाया । हालांकि उन अभिभावकों को इसका काफी वृहद स्तर पर विरोध झेलना पड़ा लेकिन वे अपनी बात पर अड़े रहे और लड़कियों की शिक्षा मे कमी नहीं आने दी । पुराने रीति रिवाजों और दकियानूसी तथाकथित परम्पराओं के नाम पर हमेशा से महिलाओं का ही शोषण होता रहा है । इसलिए आज महिलाओं की सबसे बड़ी ताकत उनकी शिक्षा दीक्षा ही है ।
इसके लिए उनके अंदर शिक्षा के प्रति अलख जगाने की जरूरत होगी । उनके लिए प्रत्येक गाँव मे दोपहर की  कक्षाएं आरंभ कर उनके लिए पाठ्य सामग्री जुटाना , उनको पढ़ने के लिए प्रेरित करना , कक्षाओं मे लाना , उनकी समस्याओं को सुन कर समाधान निकालना इत्यादि शामिल हो । उनको स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा भी दी जानी चाहिए जिससे वे स्वयम अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते हुये अपने परिवार का ध्यान भी रख सके । हिंदुस्तानी स्त्री परिवार से अलग कभी कुछ सोच ही नहीं पाती , इसके लिए परिवार के कल्याण संबंधी जानकारी भी मुहैया कराई जानी चाहिए । इन कक्षाओं का मुख्य उद्देश्य हो कि हर घर की हर महिला शिक्षित हो , जागरूक हो । इसके लिए समय समय पर सरकार की ओर से भी पहल की जानी चाहिए । इस संबंध मे सरकार द्वारा कुछ कदम उठये गए जिन पर दृष्टिपात कराना चाहूंगी ।
ज्यादा से ज्यादा बालवाड़ियों की स्थापना की गई जिससे लड़कियों को छोटे बच्चों की देख भाल के लिए घर पर न रहना पड़े और वे स्कूल जा सकें ।
ग्रामीण क्षेत्रों मे ज्यादा से ज्यादा महिला शिक्षकों की नियुक्ति की गई ।
बालिका छात्रावासों की भी स्थापना की गई ।
प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया ।
इसके अतिरिक्त कुछ और योजनाएँ भी बनी जिनमे लड़कियों को घरेलू काम काज जैसे रसोई बनाना, कढ़ाई बुनाई आदि की ही शिक्षा न देकर विज्ञान एवं तकनीक संबंधी विषयों की शिक्षा पर ज़ोर दिया गया। जहां आज लड़कियों ने खुद को सिद्ध भी किया है । स्व॰कल्पना चावला एवं सुनीता विलियम्स इस बात का ज्वलंत उदाहरण है । इसके अलावा मेडिकल क्षेत्र मे भी महिलाओं का खासा योगदान है जिसे नकारा नहीं जा सकता ।
इन सबसे शिक्षा लेते हुए उन ग्रामीण महिलाओं को जागृत होने अतीव आवश्यकता है । इसी आशा के साथ अगले लेख मे शिक्षा संबंधी कुछ अन्य जानकारी के साथ फिर मिलूँगी ।

1 comment:

  1. इस सुन्दर और सार्थक लेख हेतु बधाई स्वीकारें

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