Sunday 11 August 2013

"जो बोल रहे हो निःस्वार्थ भाव से ही न"

मंदिर का घंटा बजते हुए एक भद्र पुरुष  ने परमात्मा की मूरत के सामने हाथ जोड़ कर अंखे बंद कर लीं और  बड़ी तन्मयता से कुछ बुदबुदाने लगा – "हे प्रभु ! इस बार मेरा काम बन जाए मै नंगे पाँव चलकर आऊँगा सोने का छ्तर चढ़ाऊँगा , बीस भूखों को खाना खिलाऊँगा । बस इस बार मेरा काम बना दे ।" परंतु क्या वह जो बोल रहा था वह सच था बिना किसी स्वार्थ के बोला गया था या कितना काम वह सच मे कर सकता था । उसकी बातों मे कितना स्वार्थ छिपा था ।

 अपने आस पास हम अक्सर देखते है इस तरह की बातें करने वाले लगभग सभी ही है । क्या हमने कभी प्रभु से नहीं कहा होगा या नहीं कहते है । कहा भी होगा और कहते भी है लेकिन मानते नहीं । घरों मे अपने माता पिता से ,अपने भाई बंधुओं से, अपने मित्रों से , पति पत्नी से , पत्नी पति से हर जगह किसी न किसी स्वार्थ वश असत्य या मिलावटी बातों का जाल अवशय बुना गया होगा ।

मधुर वाणी मे बोलना कोई गलत बात नहीं है बल्कि यह बड़ी ही सुंदर बात है कि कोई व्यक्ति सरलता से , मधुरता से बातचीत करता है जो कानो को अच्छी लगती है ।

 " बानी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय ॥

परंतु शब्दों को मीठी चाशनी मे भिगो कर बोला गया असत्य उस समय तो लुभा सकता है किन्तु जिस पल यथार्थ सामने आता है तब जो हार्दिक चोट पहुँचती है वह कष्ट दायी होता है । अतः प्रयास ये होना चाहिए कि आपके मधुर असत्य से भी किसी को कष्ट न पहुंचे । । ऐसे भद्र लोगों के लिए कहा गया है :-

            सत्यम् ब्रूयात् प्रियम् ब्रूयात् । अप्रियम् सत्यम् न ब्रूयात् ॥"

अर्थात :- सत्य बोलो प्रिय बोलो किन्तु अप्रिय सत्य भी मत बोलो । इस कथन से निःस्वार्थ भाव का दर्शन होता है।

इसके विपरीत कुछ कठोरता से बात करने वाले भी है जो ये कहते है कि भाई हम तो ऐसे ही बोलते है और सच बोलते है किसी को बुरा लगे तो लगा करे हमे क्या ? हमने तो भले की बात की थी ।

ऐसे लोगो को सिर्फ कठोरता से ही बात करना अच्छा लगता है या यों कहें कि उनका स्वभाव ही ऐसा होता है । ऐसे लोगों के लिए तो रहीमदास जी ने बड़ा अच्छा वक्तव्य दिया है :-

   खीरा मुंड उड़ाई के घिसिए नून लगाय । रहिमन कड़ुवे मुखन की होवे यही सजाय ॥

 आपने तो भले की बात की लेकिन क्या जिसके लिए बात की उस पर क्या बीती यह जानने की कोशिश की । हो सकता है आपकी बात से वह और अधिक अवसाद मे चला गया हो । यहाँ आपने कौन सा भला सोचा ? आपका भाव क्या था ? यदि आपने निःस्वार्थ भाव से कहा है और आपके कहने का गलत असर हो गया है तो तुरंत गलतफहमी को दूर कर दीजिये। यकीन मानिए आपके द्वारा ऐसा करना आपके निःस्वार्थ भावना से कहे हुए तथ्य को मजबूती प्रदान करेगा ।



 वाक्सायका वदनान्निष्पतन्ति यैराहतः शोचति रात्र्यहानि।

     परस्य ना मर्मसु ते पतन्ति तान्पंडितो नावसृजेत्परेभ्यः ॥“ (महाभारत)

अर्थात :- वचन रूपी बाण मुख से निकलते है और वे दूसरों के मर्म पर ही चोट पहुँचाते हैं, जिनसे आहत हुआ मनुष्य रात दिन शोक ग्रस्त रहता है इसलिए विद्वान व्यक्ति इनका प्रयोग दूसरों पर कदापि न करे ।


4 comments:

  1. vichar karne layak batein...dhanyavad share kiya apne

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  2. Anuapurnaji,
    Though you are right when you talk about speaking truth but most of the people follow the short passage of lie & think that they have made fool of other person.
    Vinnie,

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  3. सच्ची बात मिठे शब्दों के साथ और सच में ऐसा हो जाएं तो कष्ट ही दूर हो जाएं !

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  4. सच्ची बात मिठे शब्दों के साथ और सच में ऐसा हो जाएं तो कष्ट ही दूर हो जाएं !

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