“अतुकांत" कविता
जीव है पक्षी की अनुहार ,
उड़त नहि लागे नेक अपार ।
एक द्वार की कौन चलावे ,
लागे हैं नौ द्वार ।
किस द्वारे से किस द्वारे जावे,
कैसा ये पाखंड दिखावे ।
कोउ न जानन हार,
नित यहि मे भरमावे ।
गढ़ लइ कोट अटारी सुंदर ,
कीन्ही यहाँ तैयार ।
षटरस व्यंजन नित्य खवावे,
करि सोरह सिंगार ।
नित नए करतब दिखलावे ,
भूल समय का प्यार ।
Nice
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDelete''नित नए करतब दिखलावे,
भूल समय का प्यार ।''
बहुत सुन्दर शब्द कहे आपने सुन्दर कविता रची
खूब तो...वाह !!
ReplyDeleteसुन्दर रचना की बधाई !
ReplyDeleteसुन्दर रचना की बधाई !
ReplyDeleteबहुत खूब :)
ReplyDeleteदस द्वारों का पींजरा ,तामें पंछी पौन ,
ReplyDeleteरहे अचंभा होत है ,गए अचंभा कौन !
सुन्दर रचना की बधाई !
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