Sunday 11 August 2013

पाखण्ड

अतुकांत" कविता
जीव है पक्षी की अनुहार ,
उड़त नहि लागे नेक अपार ।
एक द्वार की कौन चलावे ,
लागे हैं नौ द्वार ।
किस द्वारे से किस द्वारे जावे,
कैसा ये पाखंड दिखावे ।
कोउ न जानन हार,
नित यहि मे भरमावे ।
गढ़ लइ कोट अटारी सुंदर ,
कीन्ही यहाँ तैयार ।
षटरस व्यंजन नित्य खवावे,
करि सोरह सिंगार ।
नित नए करतब दिखलावे ,
भूल समय का प्यार ।

8 comments:

  1. वाह वाह
    ''नित नए करतब दिखलावे,
    भूल समय का प्यार ।''
    बहुत सुन्दर शब्द कहे आपने सुन्दर कविता रची

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  2. सुन्दर रचना की बधाई !

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  3. सुन्दर रचना की बधाई !

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  4. दस द्वारों का पींजरा ,तामें पंछी पौन ,
    रहे अचंभा होत है ,गए अचंभा कौन !

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  5. सुन्दर रचना की बधाई !

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