Saturday, 15 June 2013

बाबुल प्यारे

जिस तरह एक वृक्ष तभी ठीक से खड़ा रह पता है जब उसकी जड़े मजबूत होती हैं जिस पेड़ की जड़ें मजबूत नहीं होती उसको हल्का सा हवा का झोका भी उखाड़ फेंकता है उस पेड़ को धूल धूसरित होने मे समय नहीं लगता । ठीक उसी तरह एक बालक रूपी पौधे को सींच कर बड़ा वृक्ष बनाने मे जितना योगदान माँ का होता है उतना ही योगदान पिता का भी होता है। ये कहना अतिशयोक्ति न होगी कि दोनों ही एक गाड़ी के दो पहिये हैं । यदि माँ बच्चे को पाल पोस कर अच्छे संस्कार देकर संसार के योग्य बनाती है तो पिता उसका भरण पोषण करता है अपनी खुशियों को भूल कर पिता अपने बच्चे को हर वो खुशी देना चाहता है जिन खुशियों की मांग बच्चों के द्वारा की जाती है। पिता वह है जो जीत कर भी अपने बच्चे के लिए हार जाता है जिसकी उंगली पकड़ कर हम चलना सीखते हैं जो हमे दुनिया मे चलना सिखाता है ।
प्राचीन काल से हम देखते आए है कि बालक अपने पिता की छत्र छाया मे ही स्वयं को महफूज़ पाता है । पिता के चौड़े सीने पर सिर टिका कर बच्चा हर गम भूल जाता है , एक सशक्त अहसास पा जाता है । आज के  अङ्ग्रेज़ी चलन ने हमारे संस्कारों और रिश्तो के मायने ही बदल दिये है , पिता जी , बाबू जी , पापा जी अब डैड, डैडा, डैडू, पोप्स  पर आकार सीमित हो गए है और शब्दों के अनुसार ही रिश्तों के अर्थ भी बदल गए है । यहाँ मै स्पष्ट करना चाहूंगी कि मै बदलते परिवेश मे बदलाव के खिलाफ नहीं हूँ और न ही ये कहना चाहती हूँ कि शब्द गलत है । गलत हो गयी है सोच, अंग्रेज़ियत का चश्मा पहने आज की पीढ़ी मे रिश्ते निभाने की काबिलियत खत्म हो गयी है। एकल परिवारों के बढ़ते चलन ने रही सही कसर भी पूरी कर दी है ।
आजकल बच्चे जिस पिता की उंगली थाम कर चलना सीखते हैं उसी पिता को वे अपनी प्राइवेसी मे बाधक मानते है। जो पिता उनके बचपन मे उनके द्वारा किए गए सैकड़ों प्रश्नो के उत्तर खुशी खुशी देते नहीं थकता था उसी पिता के एक भी प्रश्न को अपने जी का जंजाल मान उत्तर देना जरूरी नहीं समझते।
विदेशों से आयी इस परंपरा ने कि एक दिन चलिये आज फादर्स दे मना लेते हैं आज मदर्स डे मना लिया जाय , एक दिन महिला दिवस मना लिया जाय : एक दिन उनके नाम तो किया है । किन्तु ये उसी तरह है जैसे कोई त्योहार आता है तो लोग बस परंपरा निभा कर कर्तत्व की इति श्री कर लेते है । कहीं कहीं तो लोग इस परिवर्तन के विषय मे अनभिज्ञ ही है । मनाइए जरूर मनाइए फादर्स डे लेकिन इस बार कुछ इस तरह कि पिता जी का मन भी प्रफुल्लित हो उठे और वे कह उठें कि काश ! हर दिन हो फादर्स डे  । आखिर उन्होने आपके लिए अपने जीवन की हर खुशी कुर्बान की है आपकी हमारी खुशी का हमेशा ख्याल रखा है, और रखते भी है । दीजिये उन्हे सरप्राइज़ और फिर देखिये उनके चेहरे की खुशी ।  

“ बाबुल प्यारे
 तुमसे ही रौशन है,
 चिराग हमारी दुनिया के,   
 तुम बागवान हो ,हम
 फूल हैं तेरी बगिया के,
 जो तुम न होते ,
 हम भी न होते ,
 बस फूल ही रहते धूल के  ,
 बाबुल प्यारे !!!!!!!!!!!
 

7 comments:

  1. pyari si abhivyakti, achchha laga aapke blog tak pahuch kar:)
    abhar ...

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    1. धन्यवाद मुकेश जी। यूं ही आते रहिए और हौसला बढाते

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  2. जो तुम न होते ,
    हम भी न होते ,
    बस फूल ही रहते धूल के ,
    बाबुल प्यारे !!!

    सच् कहा आप ने ....

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    1. अरे वाह ! मीना जी आखिर मिल ही गई , धन्यवाद हौसला अफजाई के लिए।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. धन्यवाद तुषार जी ।

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