Wednesday 15 May 2013

संस्कार जगाओ संस्कृति बचाओ

किसी पेड़ के पत्ते एवं फूलों की सफाई से वह पेड़ हरा-भरा नहीं हो जाता , बल्कि उसकी जड़ों को पोषण मिलने पर ही पेड़ बड़ा होगा ,फूलेगा फलेगा । ऐसे पल्लवित , पुष्पित एवं विकसित वृक्ष के नीचे पथिक कुछ देर विश्राम कर लेता है , उसके फलों से पथिक की भूख मिटती है , ठीक उसी तरह व्यक्ति को समाज का अच्छा नागरिक बनने के लिए अगर बचपन से ही उसके क्रिया कलापों की सही दिशा निर्धारित की जाय तो समाज को एक अच्छा नागरिक मिलेगा ।
बबूल का बीज बोकर आम के पेड़ की आशा नहीं की जा सकती । बच्चे के मन मे रोपा गया बीज समाज हित मे कोई फल देता है तो वह संस्कारी होने का प्रतीक है। मनुष्य का आचरण ही उसके व्यक्तित्त्व की व्याख्या करता है। संस्कार उस नींव का नाम है जिस पर व्यक्तित्व की इमारत खड़ी होती है । एक  सुसंस्कारित व्यक्ति अपनी अवधारणाओं से और एक व्यक्ति अपने चरित्र से जाना जाता है । संस्कारवान संतान ही गृहस्थ आश्रम की सफलता का सच्चा लक्षण है। हर माँ बाप चाहते है कि उनकी संतान उनकी अपेक्षा के अनुसार बने , परंतु कई बाहरी परिस्थितियाँ ,सांस्कृतिक प्रदूषण , उपभोक्ता संस्कृति जैसे कारण आज की युवा पीढ़ी एवं बच्चों  को  अपनी गिरफ्त मे लिए हुए है। खान पान, रहन सहन , तौर तहजीब, चिंतन मनन सभी क्षेत्रों मे पाश्चात्य संस्कृति एवं सभ्यता हवी होती जा रही है। कुसंस्कारों की बाढ़ मे डूबने से पहले ही हमे सचेत होना पड़ेगा ।
घर संस्कारों की जन्मस्थली है। इसलिए संस्कारित करने का कार्य हमे घर से ही प्रारम्भ करना होगा । संस्कारों का प्रवाह हमेशा बड़ों से छोटों की ओर होता है । बच्चे उपदेश से नहीं अनुकरण से सीखते हैं । बालक की प्रथम गुरु माँ ही अपने बालक मे आदर , स्नेह , एवं अनुशासन जैसे गुणों का सिंचन अनायास ही कर देती है। परिवार रूपी पाठशाला मे बच्च अच्छे बुरे का अंतर समझने का प्रयास करता है । जब इस पाठशाला के अध्यापक अर्थात दादा दादी  तथा माता पिता संस्कारी होंगे , तभी बच्चों के लिए आदर्श स्थापित कर सकते है। आजकल परिवार मे माता पिता दोनों ही व्यस्त है दोनों ही नौकरी पेशा हैं इसलिए संस्कारों के सिंचन जैसा महत्तव पूर्ण कार्य उपेक्षित हो रहा है । आज धन को प्राथमिकता दी जा रही है। कदाचित माता पिता भौतिक सुख के संसाधन जुटा कर बच्चों को खुश रखने की कोशिश कर रहे है , इस भ्रांति मूलक तथ्य को जानना होगा , अच्छे संस्कार बच्चों मे छोड़ने का मानस बनाना होगा, इसके पहल माता पिता को करनी होगी । जो कुछ वह बच्चों से उम्मीद करते है पहले उन्हे कर के दिखाना होगा तब हम बच्चों को कुछ सिखा पाएंगे। 



क्रमशः 

1 comment:

  1. माता पिता आजकल दोनों धन कमाने में व्यस्त है .कुछ अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति केलिए तो कुछ बच्चों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए.संस्कार गए तेल लेने .रही सही कसर संगी साथी और विदेशी प्रभाव ने दूर कर दिया.

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