Saturday 2 March 2013

किसी को कमतर न आँके

अपने बचपन मे एक कहानी सुनी थी जो आप सबने भी कहीं न कहीं सुनी होगी कि एक चींटी एक पत्थर का टुकड़ा उठा कर ले जा रही थी जिसने भी देखा हंस पड़ा - देखो देखो चींटी पहाड़ उठाये जा रही है एक हाथी दादा भी हंस दिये । चींटी तो जैसे तैसे करके अपने मकसद मे कामयाब हो ही गई । भले ही वह पत्थर का टुकड़ा  कुछ और नही चीनी का टुकड़ा था । परंतु जीत चींटी की हुई इसमे कोई दो राय नहीं ।  एक दिन वही हाथी दादा पेड़ पर बने घोसले को चिड़िया के बच्चों समेत नीचे फेंक दिये और पेड़ उखाड़ कर चलते बने ।  वही चींटी फिर मिली -"  दादा ये अपने ठीक नहीं किया ।" दादा बोले - "चल भाग तुझे भी मसल कर फेंक
 दूंगा ।"  चींटी बिना कुछ बोले दादा की नाक मे घुस गई और काटना शुरू कर दिया । दादा बिलबिला उठे रोते गिड़गिड़ाते रहे अधमरे से हो गए किन्तु चींटी से अपनी जान न छुड़ा सके । चींटी ने कहा मै अपनी धुन की पक्की हूँ  किसी काम को  तब तक नहीं छोड़ती जब तक पूरा नहीं हो जाता।  

हाथी जी ने क्षमा मांगी बहन माफ करो गलती हो गई अब मै किसी को भी कम और खुद को बलवान नहीं समझूँगा ।

इस कहानी के माध्यम से मेरे कहने का तात्पर्य केवल इतना है कि कभी किसी को कम न समझे , हर व्यक्ति अलग होता है हर व्यक्ति मे खूबियाँ होती है अपने फन मे वो माहिर होता है ये आवश्यक नहीं कि जिस क्षेत्र मे आप माहिर हो अगला व्यक्ति भी उस फन मे माहिर हो , उसे उन कामों के लिए प्रोत्साहित करें जिन मे वो पूरी योग्यता का प्रदर्शन कर सकता है । किसी के साथ उसकी तुलना न करें । पूरी क्षमता का प्रदर्शन व न्याय  वह तभी कर पाएगा जब उसे उसकी क्षमताओं का प्रदर्शन  करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा । 

आगे और भी ..........   

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